मेरी डायरी के पन्ने....

गुरुवार, 28 जून 2012

रिक्तता…


मनुष्य की इच्छाओ का , कभी अंत नही होता है ।
कितना ही मिले सुख , वो अनन्त नही होता है ।
दुख भले ही छोटा हो , सदा विशाल लगता है ।
बीत जाये वर्ष कितने , मन मे कसक रहता है ।
हर बार सोंचता है मन , आज मिले वरदान बस ।
फ़िर ना हम माँगेगे कुछ , जो मिलेगा रहेंगे खुश ।

फ़िर जैसे पूरी होती आशा , मन मे उठती नयी अभिलाषा ।
जो कुछ मिला उसे भुलाकर , जो मिला नही उसको पछताता ।
जन्म से लेकर पुनर्जन्म तक , व्याकुल होकर समय गँवाता ।
खोकर स्वप्नो की दुनिया मे , जीवन मृगमारीचका बनाता ।
अपनी अनन्त इच्छाओ का , वो अंत नही कर पाया है ।
पशु से मानव भले बना , महा मानव नही बन पाया है ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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