मेरी डायरी के पन्ने....

सोमवार, 11 जून 2012

फिर वही..

है डगर भी वही , है इरादे वही ।
चाह दिल में उठी , फिर से पा लूँ वही ।
रूप तेरा मुझे फिर लुभाने लगा ,
मेरे दिल में वो चाहत जगाने लगा ।
एक कंकड़ जो उछाला कही दूर से ,
मेरे मन में वो हलचल मचाने लगा ।

मेरी चाहत में कुछ भी नया है नहीं ,
बस वो बनके मेरी लत छाने लगा ।
जब भी देखूँ मै कोई चेहरा हँसी  ,
रात सपनों में तुझको बुलाने लगा ।
है डगर भी वही , फिर से मंजिल वही ।
दिल मे चाहत वही , पग में आहट वही ।

आगे बढ़ कर मै  चूमू उन्ही ओंठो को,
हाथो में मै  थामूँ उन्ही हाथो को ।
फिर से लौटा मै  लाऊ वही बीता कल ,
तुझसे नज़रे मिलाऊ ज्यों हो पहली नजर ।
है डगर भी वही , है इरादे वही ।
चाह दिल में उठी , फिर से पा लूँ वही ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

2 टिप्‍पणियां:

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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