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शुक्रवार, 8 जून 2012

बंधन..

जो बोला तुमने सच ही बोला ,
सच के सिवा कहाँ कुछ बोला ।
क्यों  व्यर्थ मै  उससे आहत होऊ ,
जब तुमने अपने दिल से बोला ।
निश्चय ही हम सब आजाद है ,
इसका मुझको भी एहसास है ।
क्यों व्यर्थ सहे कोई बंधन पराये ,
स्वतंत्रता हम सबका अधिकार है ।

हाँ रिश्तो में यदि अपनापन हो ,
प्रेम समर्पण  सच्चे मन से हो ।
तो प्रेम का बंधन प्यारा लगता ,
सदा जीवन में व्यापकता लाता ।
पर प्रेम का पथ होता है संकरा ,
एक से ज्यादा सदा उसको अखरा । 
वही सफल हो पाया उस पर ,
जिसने त्यागा स्वयं को उस पर ।

यूँ तुम भी थे जिस बंधन में ,
वो प्रेम का ही बंधन था प्रिये ।
मैंने भुला दिया था स्वयं को ,
पर भुला ना पाए तुम स्वयं को ।
इसीलिए तुम्हे चुभता था बंधन ,
आहत करता था जबरन समर्पण ।
तो तुम्हे मुबारक हो आजादी ,
मै देता हूँ तुम्हे सम्पूर्ण आजादी ।


सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

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आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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