मेरी डायरी के पन्ने....

रविवार, 6 मई 2012

मूक, बधिर, वाचाल..

लोग कहते है ये इन्सान कितना बोलता है ?
शब्दों को शब्दों से ये काटता है ,
अपने ही बातों की रट लगाता है ।

सीखा नहीं इसने कभी, चुप हो रहना ।
ना जाने क्यों ये इतना बोलता है ?
तो जाकर पूंछा मैंने ये सवाल उसी से ,

बताया फिर हकीकत भी उसने बोलकर ही ।
ये दुनिया अजब मूर्खो की है दुनिया ,
सभी दूसरो को हैं बस उपदेश देते ।
उपदेश तो चलो हम चुप रहकर भी सुन लें ,
मगर तोहमते भी आदतन लगाते रहते सभी ।
शुरू के दिनों में मै सुनता था केवल  ,
मगर मेरी हद भी गुजरने लगी फिर ।
तो मैंने कहा अब बनकर दर्पण सा रहूँगा ,
जो जैसा कहेगा उससे वैसा कहूँगा ।

मगर इस जहां में है सभी वाचाल ही ,
फिर कैसे रहूँ मै जग में चुपचाप ही ।
अगर ना बोलो तो सब कहते यही ,
देखो वो डरकर कैसा खड़ा है अभी ।
अगर कुछ  बोलो तो कहते सभी ,
देखो ये रहता नही चुपचाप कभी ।

अगर सच वो बोले तो सुन लूँ मै केवल ,
मगर झूँठ का साथ नहीं होता मुझे बर्दास्त।
है अगर गर्ज, मर्ज दुनिया की गप्पे लड़ना,
तो सुनना पड़ेगा उसे मेरा भी अफसाना ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

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"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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