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शनिवार, 21 अप्रैल 2012

कुछ बहुत पुरानी बाते...

रात अचानक जाने कैसे , याद मुझे तुम आये प्रियवर ।
खोया था मै अपने मन के , उठे खयालो में प्रियवर ।
कुछ भूली बिसरी यादे थी , कुछ बहुत पुरानी बाते थी ।
कुछ याद लौट कर आती थी , कुछ मन को मेरे सुहाती थी ।
फिर जाने कैसे तेरी यादे , बनकर आँधी सी छाने लगी ।
मुझको मेरे अंतर्मन तक , व्याकुल कर वो जाने लगी ।

यूँ तो जाने कितने दिन, वर्ष काल महीने बीत गए है ।
लेकिन शायद मेरे मन में , वो अब भी ताजे बने हुए है ।
माह जेठ था शायद वो , धरती व्याकुल प्यासी थी ।
तेरे अधरों की तपिश मुझे , पल में जलाने वाली थी ।
इससे पहले कि जलकर मेरा , हश्र पतंगे जैसा होता ।
तेरे प्रेम की अग्नि में , तपकर स्वर्ण मै शायद होता ।

दूर कही कुछ बदली छाई , बारिश संग वो लेकर आयी ।
लगे भींगने हम दोनों ही , जब बंद हो गयी बहनी पुरवाई
शायद सावन आया था वो , घनघोर घटा संग लाया था
उसके अविरल धारा ने फिर , कुछ मेरा अश्रु बहाया था
इससे पहले की अश्रु मेरे , खारा करते मीठी नदियों को  
रोम रोम मेरा लगा ठिठुरने , अगहन की ठंडक आने लगी

जब तक आया पूस माह , तुम मुझसे दूर ही रहने लगे
माघ की ठंडक के संग शायद , राह नयी तुम चुनने लगे
फाल्गुन में भी मिले नहीं तुम , होली बदरंग सी बीती थी
लिए अबीर गुलाल मै बैठा था , सज रही तेरी जब डोली थी
यूँ तो गुजर गए है अब तक , कुछ वर्ष महीने दिन अरु काल
लेकिन मेरे मन में अब भी , शेष कही है तेरा हाल.............


सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया रचना है आपकी..और साथ में ये तस्वीर तो अच्छी है

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स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
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पर
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अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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