दूर गगन के कोने में , जो एक सितारा चमक रहा ।
वीरान अकेली राहों में , वो मेरा साथी सदा रहा ।
जब जब औरो ने मुझको , चुपचाप अकेला छोड़ दिया ।
मुझको मेरी महफ़िल में , जब गैर बनाकर छोड़ दिया ।
वो एक सितारा आगे बढ़ , हर पल मेरा साथ दिया ।
जब दिखी नहीं परछाही भी , हमसाये का एहसास दिया ।
अब आज अकेला है जब वह , क्यों न उसका साथ मै दूं ।
चुपचाप किनारे रहकर मै , इस रिश्ते का बलिदान क्यों दूं ।
हाँ कल फिर से चमकेगा , कोई और नया सितारा फिर ।
लेकिन क्या दिल का रिश्ता , हम जोड़ सकेंगे उससे फिर ।
सम्बन्ध सदा ही बनाते है , ठोस कसौटी पर कसकर ।
मित्र सदा ही मिलते है , दिल में औरो के बसकर ।
अगर चाहिए मित्र 'अनंत' , रिश्तो को कसौटी पर परखो ।
लेकिन उससे पहले तुम , स्वयं को निश्चित ही परखो ।
लेकिन उससे पहले तुम , स्वयं को निश्चित ही परखो ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
बहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना है बधाई।
जवाब देंहटाएंसुंदर एव सार्थक रचना .....
जवाब देंहटाएंProtsahan ke liye aap sabhi ka dil se aabhar...
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना..मगर ऐसा कभी आपके साथ न हो भाई.
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