मेरी डायरी के पन्ने....

गुरुवार, 5 अप्रैल 2012

एक सितारा..

दूर गगन के कोने में , जो एक सितारा चमक रहा ।
वीरान अकेली राहों में , वो मेरा साथी सदा रहा ।
जब जब औरो ने मुझको , चुपचाप अकेला छोड़ दिया ।
मुझको मेरी महफ़िल में , जब गैर बनाकर छोड़ दिया ।
वो एक सितारा आगे बढ़ , हर पल मेरा साथ दिया ।
जब दिखी नहीं परछाही भी , हमसाये का एहसास दिया ।

अब आज अकेला है जब वह , क्यों न उसका साथ मै दूं ।
चुपचाप किनारे रहकर मै , इस रिश्ते का बलिदान क्यों दूं ।
हाँ कल फिर से चमकेगा , कोई और नया सितारा फिर ।
लेकिन क्या दिल का रिश्ता , हम जोड़ सकेंगे उससे फिर ।
सम्बन्ध सदा ही बनाते है , ठोस कसौटी पर कसकर ।
मित्र सदा ही मिलते है , दिल में औरो के बसकर ।

अगर चाहिए मित्र 'अनंत' , रिश्तो को कसौटी पर परखो ।
लेकिन उससे पहले तुम , स्वयं को निश्चित ही परखो ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

5 टिप्‍पणियां:

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
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अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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