मेरी डायरी के पन्ने....

रविवार, 4 दिसंबर 2011

ये कैसा दीवानापन है ?

उफ़ ! ये  कैसा दीवानापन है ,  तुमसे  ही   बेगानापन   है ।
बिन  तेरे  व्याकुल  हूँ  रहता , पाकर क्यों बेचैन मै रहता ।

हसरत भरी निगाहों से जिन्हें , हर पल मै देखा करता ।
फिर भी उनको पाकर क्यों , मै आधा अधूरा सा रहता ।
जिनसे करता अतिशय प्यार , जिनका मै दीवाना रहता ।
फिर भी उनको पाकर क्यों , खाली-खाली सा मै रहता ।

उनको भी एहसास है इसका , पर वो बात छुपाते है ।
शायद अपनी कमजोरी पर , मन ही मन घबड़ाते है ।
मेरा क्या मै हूँ बादल सा , उमड़-घुमड़ कर बरस ही पड़ता ।
जो भी आता मन में मेरे ,  कहे बिना मै रह नहीं सकता ।

बात समझता हूँ मै भी , ये बस मेरा दीवानापन है ।
पर नहीं समझ  मै पाता हूँ , फिर क्यों बेगानापन है ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

 

3 टिप्‍पणियां:

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
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पर
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अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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