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गुरुवार, 4 अगस्त 2011

राज...

तुम लाख छिपाओ राज मगर , जग को पता चल जायेगा ।
आदर्शो का तेरा आडम्बर अब , अधिक नहीं चल पायेगा ।
जो कदम तुम्हारे भटक रहे , वो अपना बयां कह जायेंगे ।
तेरे पाखंडो के अवशेषों से , हम राज तुम्हारा पाएंगे ।

तुमने चुने जो सिपहसलार , वो ही तुम्हे भटकायेंगे ।
जब फंसेगी उनकी गर्दन तब , वो ही तुम्हे फंसायेंगे ।
अपनी जान बचाने के हित , बकरा तुम्हे बनायेंगे ।
तेरे पाप की सभी गगरिया , चौराहे पर लायेंगे ।

ये मत सोचो जग में तुम , सदा रहोगे अपराजित ।
शीश कटा कर औरों का , सदा रहोगे कालविजित ।
एक दिन वो भी आएगा, जब जग तुमको बिसरायेगा।
भूली बिसरी बातों में ही , फिर नाम तुम्हारा आएगा ।

(मूलतः अपने कार्य क्षेत्र में किसी को लक्ष्य कर कभी लिखा था इसे )
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

4 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी कविता की यही खूबी होती है कि वह कई अवसरों पर सटीक प्रतीत होती है.

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  2. सार्थक सन्देश देती हुई रचना ...

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  3. इस कविता का तो जवाब नहीं !
    सार्थक सन्देश देती हुई रचना

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स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
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पर
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अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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