मेरी डायरी के पन्ने....

शनिवार, 27 अगस्त 2011

तुझको बारम्बार सलाम ऐ अन्ना...

रात के अंधेरो में जो बिजलियाँ चमकती हैं ,
रास्तो पर वो अन्ना के रोशनी ही करती हैं।

चिलचिलाती धूप में जो बवंडर आते है ,
अन्ना के बदन को वो ठंडक पहुँचाते है ।

कडकडाती ठण्ड में जो कोहरे घने होते है ,
घेर कर अन्ना को मक्कारों से बचा लेते है ।

कौन कहता है की ज्वार कश्तियाँ डुबो देते है ,
वो सरफरोशो के जहाजो के रास्ते बना देते है ।

बदलो के झुण्ड जो सूरज यूँ को छुपा लेते है ,
आसमान के सीने पर इन्द्रधनुष दिखा देते है ।

कौन कहता है कि अँधेरा बस सबको निगल जाता है ,
घर की चौखट पर वो अन्ना सा दिया जला जाता है।

पूजता हूँ मै नहीं उगते सूरज को अकेले ,
डूबता सूरज भी हमें राह दिखा जाता है ।

पूजे वो बलवानो को जो चलते है औरो के बल पर ,
अन्ना जैसे भीषम पितामह चलते है अपने बल पर ।



तुझको बारम्बार सलाम ऐ अन्ना,

है तुझपर दिल कुर्बान ऐ अन्ना...

कुरुक्षेत्र में अडिग है तू भीष्म पितामह के जैसा...
मन मोहे तू सारे जग का कृष्ण कन्हैया के जैसा...

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

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