मेरी डायरी के पन्ने....

रविवार, 17 जुलाई 2011

कैसे कहें हम तुमसे प्रिये

कैसे कहें हम तुमसे प्रिये , क्या खोया है तुमको पाकर ।
नींद गयी मेरी रातों को , और चैन गँवाया तुमको पाकर ।

कल तक मै बैरागी सा , था प्रभु का ही बस अनुरागी ।
जब से जागा राग तुम्हारा , भूल गया  मै जग बाकी ।
कल तक होते थे दिन मेरे , रातें भी सब मेरी थी ।
मन भी पूरा मेरा था , और बातें भी सब मेरी थी ।

आज हुआ सब जगत तुम्हारा , शेष रहा न कुछ भी मेरा ।
लो मिटा दिया अंतर मैंने , अब क्या है मेरा क्या है तेरा ।

अब तो केवल याद तुम्हारी , प्रतिपल मुझे सताती है ।
तेरे कदमो की आहट ही , अब  हर पल मुझे सुनाती है ।

चाह रहा हूँ बस इतना ही , कभी याद तुम्हे भी मै आऊँ   ।
अधिकार नहीं बस थोड़ी सी , जगह तेरे दिल में पाऊँ   ।

 सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

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ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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