मेरी डायरी के पन्ने....

बुधवार, 29 जून 2011

भँवर..

मन के अथाह सागर में ,
प्रतिपल हलचल रहती है ।

भावनाओ की अनगिनत , 
लहरे रोज मचलती हैं ।

चाहतो की नित जटिल ,
भँवरे  यहाँ बनती हैं ।

आगोश में अपने समाये ,
भावनाओ को रखती हैं ।

जो भी चाहो वो दिखेगा ,
चाहतो की इन भँवर में ।


कर के देखो तुम जरा ,
मन के सागर का मंथन ।


© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
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पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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