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मंगलवार, 17 मई 2011

दाग भी आजकल अच्छे है

किसी ने क्या खूब कहा है ...
"मैं उनको शक की निगाहों से देखता क्यूँ हूँ, वो लोग जिनके लिबासों पे कोई दाग़ नहीं.. !"

खैर दाग भी आजकल अच्छे है... तो 
चाहतो की जब हदों से , 
पार हम जाने लगे ।
नींद में भी आपका , 
जब नाम दोहराने लगे ।
यूँ देख कर मेरे हाल को , 
जब लोग कतराने लगे ।
छोड़ कर मुझको अकेला , 
अब आप भी जाने लगे ?

आपके एतबार पर , 
मैंने छोड़  दी पतवार भी ।
अब जब मजधार में आ गए , 
कैसे छोड़ दें हम प्यार भी ।
 अब तो चाहे पार हों , 
या डूब जाएँ हम यहाँ ।
चाहतो की सब हदों को , 
हमें पार करना है यहाँ ।।

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

7 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्कार जी
    .........खूबसूरत तारीफ़ के लिए शब्द कम पड़ गए..

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  2. बहुत सुंदर भाव युक्त कविता

    जवाब देंहटाएं
  3. अच्‍छा लगा आपके ब्‍लॉग पर आकर....आपकी रचनाएं पढकर और आपकी भवनाओं से जुडकर....

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  4. सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति..

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  5. मन की बात सुंदरता से लिख दी है ...

    जवाब देंहटाएं

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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