कब तक चलेगी क्रूरता ।
पाखंड के व्यापार में ,
कब तक टिकेगी सभ्यता ।
जब धर्म के नाम पर ,
हो रहा व्यापार है ।
तब बचेगा धर्म कब तक,
बाजार के वो हाथ है ।
जब अमन के नाम पर ,
हो रहें है युद्ध सब ।
हैवानियत की भीड़ में ,
कब तक बचेगी इंसानियत ।
जब न्याय की ओंट में ,
हो रहा अन्याय है ।
न्याय के मंदिरों में ,
कब तक बजेगी घंटियाँ ।
मानवता के नाम पर ,
हर तरफ दानवता है ।
दानवों के बीच में ,
कब तक बचेगी मानवता ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
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"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "
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