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शुक्रवार, 15 अक्टूबर 2010

कार्य और कारण

कार्य और कारण में ,
सदा सामंजस होता है ।
बिना कारण कोई कार्य ,
कहाँ धरा पर होता है ।
हम कहें भले है कार्य अकारण ,
सोंचो क्या यह सच होता है ?
क्या अंतर-मन का भाव हमारा ,
कार्य का कारण नहीं होता है  ?
ये सच है पूर्व नियोजित कारण ,
हर कार्य का कारण नहीं होता है ।
लेकिन जग में कोई कार्य ,
नहीं बिना अकारण होता है । 
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

2 टिप्‍पणियां:

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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