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सोमवार, 11 अक्टूबर 2010

लक्ष्मण रेखा

युगों - युगों पहले जब , जब राम थे वनवास में ।
मृग रूप धर मारीच ने , करना चाहा था धोखा ।
कहते है तभी द्वार पर , लक्ष्मण ने खींची थी रेखा ।
उसे रावण भी लाँघ न पाया, ना भंग उसे कर पाया ।
फिर जाल बिछाकर शब्दों का , सीता को उसने उलझाया ।
आ जाओ बाहर रेखा के , यही सीता को उसने समझाया ।
तब से लक्ष्मन रेखा को , फिर जिस नारी ने पार किया ।
ना लौट सकी वो घर वापस , घर को अपने बर्बाद किया ।
दीवार नहीं है लक्ष्मण रेखा , जो खींची जाती हर युग में ।
मर्यादाओं  की परिधि है ये , जिसमे सुरक्षित है नारी सदा ।
ये बंधक नहीं बनाती है , बस बुरी नीयति से ये बचाती है ।
त्रेता युग से कलयुग तक , सदा अपना कर्त्तव्य निभाती है । 

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

3 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर प्रस्तुति....

    नवरात्रि की आप को बहुत बहुत शुभकामनाएँ ।जय माता दी ।

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  2. मर्यादाओं की परिधि है...बिल्कुल सही..उम्दा रचना!

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  3. मर्यादाओं का भी एक अपना स्थान है...सुन्दर प्रस्तुति...

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ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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