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बुधवार, 8 सितंबर 2010

जिंदगी कागज की नाव

जिंदगी है बरसाती नदी सी , इन्सान कागज की नाव है ।
है नहीं पतवार कोई , कस्ती बहती धारा के साथ है ।

कहीं भँवर है उसे घुमाती , कभी हैं लहरे उसे हिलती ।
कभी भिंगोती बारिस की बूंदे , कभी पवन से वेग वो पाती ।

जिस मोड़ पे लहरें मुडती है , वो मुड जाती उसके साथ है ।
जीवन चक्र को पूरा कर , कस्ती खो जाती नदी के साथ है ।


कर्म है उसका चलते रहना , भाग्य है सब कुछ सहते रहना ।
जन्म से लेकर अंत समय तक , प्रतिपल धारा संग बहते रहना ।
सहना रोज थपेड़े को , नित अवरोधों से टकराते रहना ।
हर होनी अनहोनी को , बरदान मान कर चलते रहना ।
कागज की हर नाव का , अंत ही उसका भाग्य है ।
बहती रहे अगर निश्चल हो , तो यह उसका सौभाग्य है ।

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

2 टिप्‍पणियां:

  1. हर होनी अनहोनी को वरदान मानकर चलते रहना।
    ... और फिर भी बच जाए यही उसका सौभाग्य है। ज़िंदगी कागज की नाव है! ज़िंदगी कागज की नाव है!
    बहुत अच्‍छा फलसफा दिया विवेक भाई!

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आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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