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शुक्रवार, 17 सितंबर 2010

राजनीत

अपनो पर करम गैरों पर सितम , यही राजनीत बतलाती है ।
जो भी मिले बस लूटे रहो , ये बात हमें सिखलाती है ।
क्या अपना क्या औरों का , जो हाथ लगा ले चलना है ।
अभी हाथ में अवसर है , फिर जाने कब ये मिलना है ।
जो चीज बिके वो बेंचे चलो , जो नहीं बिका उसे लेते चलो ।
ना होगा कबाड़ी वाले को , औने पौने में देते चलो ।
चौराहे जितने खाली हो , बुत अपना वहां लगाते रहो ।
पैसे देकर चमचों से , जिंदाबाद कहलाते रहो ।
रोजी रोटी भले ना दो , हवा में तीर चलाते रहो ।
सत्ता स्थिर रखनी हो , सत्ता के दलाल बनाते रहो ।
अपनो पर करम गैरों पर सितम , ये मूल मन्त्र अपनाते रहो ।
जो भी हो बिरोधी उसके मुख पर , कालिख सदा लगाते रहो ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

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ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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