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बुधवार, 4 अगस्त 2010

हवा के पुल बनाने वाले...

हवा के पुल बनाने वाले, कभी धरातल पर पैर नहीं रखते।
वो ठोस जमीनी हकीकतों से, कभी वास्ता भी नहीं रखते।

सोंचते   हैं  वो हवा में  ,  सब कार्य   भी   करते   हवा   में ।
कार्य का परिणाम भी , जग को दिखाते बस हवा में ।

पूँछो अगर सीखा कहाँ से, तुमने बनाना पुल हवा में ।
बस मुस्कुरा देते है वो , उंगली दिखाते फिर हवा में ।

तो

वो जब बनाते पुल हवा में, स्वं भी हवा में रहते है ।
हाथों से करते इशारे,  कुछ अनबूझे  से वो हवा में ।

फिर रात को सोते में भी , बाते  करते  वो  हवा में ।
अनगिनित फरमान भी, वो जारी करते है हवा में ।

इस तरह से जब कभी , वो बनाते पुल हवा में ।
मेहनत का पैसा किसी का , वो लुटाते है हवा में ।



© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

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ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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