हवा के पुल बनाने वाले, कभी धरातल पर पैर नहीं रखते।
वो ठोस जमीनी हकीकतों से, कभी वास्ता भी नहीं रखते।
सोंचते हैं वो हवा में , सब कार्य भी करते हवा में ।
सोंचते हैं वो हवा में , सब कार्य भी करते हवा में ।
कार्य का परिणाम भी , जग को दिखाते बस हवा में ।
पूँछो अगर सीखा कहाँ से, तुमने बनाना पुल हवा में ।
पूँछो अगर सीखा कहाँ से, तुमने बनाना पुल हवा में ।
बस मुस्कुरा देते है वो , उंगली दिखाते फिर हवा में ।
तो
वो जब बनाते पुल हवा में, स्वं भी हवा में रहते है ।
तो
वो जब बनाते पुल हवा में, स्वं भी हवा में रहते है ।
हाथों से करते इशारे, कुछ अनबूझे से वो हवा में ।
फिर रात को सोते में भी , बाते करते वो हवा में ।
फिर रात को सोते में भी , बाते करते वो हवा में ।
अनगिनित फरमान भी, वो जारी करते है हवा में ।
इस तरह से जब कभी , वो बनाते पुल हवा में ।
इस तरह से जब कभी , वो बनाते पुल हवा में ।
मेहनत का पैसा किसी का , वो लुटाते है हवा में ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "
(हिन्दी में प्रतिक्रिया लिखने के लिए यहां क्लिक करें)