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रविवार, 22 अगस्त 2010

विषाद के क्षणो का कारण

विषाद के क्षणो का, सदा कारण नहीं होता है ।
और ऐसा होना भी, अकारण नहीं होता है ।
ज्यों दूर गगन में कहीं, बादलों से ढ्क गया चाँद हो ।
ओझल हो तारे सभी पर, उन्हें ना इसका गुमान हो ।
कुछ इसी तरह से जब , मन अज्ञात भावों से घिरता है ।
अकारण ही अवसाद का, एहसास मन में भरता है ।
दूर जाना हो अगर , अवसाद के इन बादलों से ।
चीर दो अज्ञात को , ज्ञात के तलवार से ।
तुम नियंता मन के हो , मन को तुम्ही चलाते हो ।
ज्ञात और अज्ञात का , अंतर भी तुम्ही बनाते हो ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

  1. vivek Vicharon ka khulapan website ki banawat dekhkar pata chal jaata hai. website ati uttam hai aur mai nirantar aata rahonga aur tippadiyan karta rahonga.
    manik

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स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
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पर
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अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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