मेरी डायरी के पन्ने....

मंगलवार, 31 अगस्त 2010

गिरगिटिया

दूर से देखो तमाशा , पास मत जाओ अभी ।
रंग गिरगिट की तरह , बदलेगा वो आदमी ।

मंदिर से आया अभी , मदिरालय अब वो जायेगा ।
देख लिया जो हमें कहीं, मस्जिद में घुस जायेगा ।

संतो और फकीरों जैसा , चोला वो अपनाएगा ।
आप खायेगा मालपुआ , हमसे रोजे रखवाएगा । 

किसी धर्म जाति से उसका कोई , नहीं दूर का नाता है  ।
दिखे जहाँ भी मॉल उसे , बस वहीँ वो आता जाता है । 

काँख में अपने छूरा छुपाये , लिए हाथ में माला है ।
अपनी शातिर नजरो से , शिकार खोजने वाला है ।

रंग देखकर औरों का , वो अपना रंग बदल लेगा ।
अपने मन की चोरी को , फ़ौरन ही वो ढँक लेगा ।

तुम कुछ भी समझ ना पाओगे, अपना सर्वस लुटाओगे ।
भांफ ना उसको पाओगे , फँस जाल में उसके जाओगे ।

है यही सीख मेरी तुमको, तुम खड़े ओंट में कहीं रहो ।
गिरगिटिया रंग दिखायेगा , केवल तमाशा देखते रहो ।


© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
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पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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