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शनिवार, 14 अगस्त 2010

क्षमा करो 'आजाद' हमें

15 अगस्त की पूर्व संध्या पर आजादी के दीवानों को समर्पित

क्षमा करो 'आजाद' हमें , आजादी हमने अपनी बेंची ।
दुनिया के रखवालों से ,   हमने अपनी शांति खरीदी ।

भुला दिया पौरुष अपना , बाट जोहते औरों की ।
जिनसे तुमने संघर्ष किया , हम गले लगाते उनको ही ।

आन देश की बेंच कर हमने , शान बढाई है तन की ।
शान देश की बेंच कर हमने , जान बचाई है अपनी ।

भूल गए हम स्वप्नों को , अंतिम समय जो तुमने देखे ।
मिटा दिये सब आदर्शों को , जो तुमने हमको थे भेजे ।

वैश्वीकरण का युग आया , सत्ता में घुस गए दलाल ।
अपनों के सीनों पार ताने ,  संगीने  अपने ही लाल।

परिभाषा भले 'आजाद' हो , अब कहाँ देश आजाद है ?
स्वाधीन था जो पहले , सब पराधीन अब आज है ।

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
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पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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