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शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

माफ़ करो (मुलायम) सिंह

माफ़ करो (मुलायम) सिंह जी

बहुत हो गया स्वांग तुम्हारा !

पहले ठगते हो जन के मन को फिर कहते हो भूल हो गयी.. ?
फिर से दो मौका हमको अब निष्ठांपूर्वक करेंगे सेवा ..!

कौन सी सेवा,  किसकी सेवा , कैसी सेवा ? बना रहे हो मुर्ख किसे ?
स्वतंत्र धर्म-निरपेक्ष भारत को अस्थिर कर उसे जाति-पांति और संप्रदाय के खांचो में करने की सेवा....!
अहो पहले भी कहते थे कुछ लोग तुम्हे मुल्ला-आयाम सिंह !
क्यों जाति बदल ली तुमने जब साथ में आये कल्याण सिंह ?
तुम नेता हो हम जनता है, तुम नाटक हो हम दर्शक है, 
पर इससे तुमको यह अधिकार नहीं मिल जाता है, जब जो चाहो वो पाठ पडावो , जैसा तुमको भाए वैसा सत्ता पाने को स्वांग रचावो ।
जो करे स्वार्थ की पूर्ति तुम्हारी उसको जनता का हमदर्द बताओ,
मित्र बताकर  उसको अपना गलबहियां डाले फोटो खिचावाओ ।

रचो धर्म और धर्म-निरपेक्षता  की तुम मनमानी परिभाषा,
फिर जब चाहो जिसको चाहो सांप्रदायिक बतलाओ ।
यूँ  मूल रूप से तुम भी जन हो,
जन होने के नाते तुमको हक़ है जिसको चाहो मित्र बनाओ जिससे चाहो करो शत्रुता,
जैसा मन को भाए वैसा करते रहो संविधान की सीमा में।

पर क्या तुम भूल गए जिस क्षण कोई नेता होता है तब खो देता है अधिकार मनमाना स्वांग रचाने का।

पहले भी सुना गया है जग में - " मेरे मन को भय मैंने कुत्ता मार के खाया "
पर तब रजवाड़ो  की सत्ता थी जब राजा करते थे राज यहाँ ,
तब जनता नहीं हुआ  करती थी केवल रंक रहा करते थे।
तुम राज वंश के नहीं हो राजा ना बेटा तेरा राजकुवर है ,
हाँ घर की दुकान है सपा अभी यह अमर सिंह कह गए यहाँ ।
अब लोकतंत्र है नेता जी, है वो भी समझदार जिन्हें देनी  है मांफी 
और मन को भाना  कुत्ता मार के खाना नहीं रह गया है कृत्य मनमाना। ( परमिशन लेनी होगी जानवरों के सेवा दल से )

तब

थूको-चाटो , या पहले चाटो फिर थूको ! 
तुम स्वतंत्र हो,
मै कब कहता? कि पहले थूक के तुमने सही किया या गलत किया था, या अब चाट के तुमने सही किया या गलत किया ?
हाँ तुम स्वतंत्र हो,  है ये अधिकार तुम्हारा,
पर यह केवल तब तक है जब तक थूक के छींटे ना जाएँ औरों पर।

माफ़ करो कह देने भर से कोई कृत्य बदल नहीं जाता है,
"राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवादित परिसर"  तुम्हारे कहने से केवल मस्जिद नहीं हो जाता है ।
किसी एक साम्प्रदाय का पिछलग्गू , कभी जनमानस का नेता नहीं कहलाता है।
जोड़ तोड़ करके शायद फिर तुम सत्ता पा जाओ,
पर जनता का एक निष्ठ  सेवक होने का ना तुम झूंठा स्वांग रचावो ।

हम जनता है इसका मतलब हम मूर्ख हो गए ? ,
यह सत्य नहीं है नेता जी...!
मजबूरी है कुछ अपनी , कुछ संविधान में छेद रह गए ।
वर्ना तुम्हे बताते हम, नेताओं के बंजर कितने खेत हो गए ।


समझे कुछ नेता जी.......
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG


3 टिप्‍पणियां:

  1. i like the most Thuko Chato ya Chatoo Thukooo.. here many Politician Are Chaatoo n Thukoo type..Chhat Chhat ke aage AAte hai phir thuk Dete haii

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  2. Ek behatareen aur satya ko darshata vyang hai aapka. yh aajkal ke netawo ki mansikata ko atyant ji sundar tarike se batata hai
    Sabase badi bat hai ki poora lekh kavya me likha hai. Swagat hai aapka vyang lekhan men. ise news paper me bhi print karaye.

    जवाब देंहटाएं

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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