मेरी डायरी के पन्ने....

गुरुवार, 29 जुलाई 2010

हे अधिकारी..

दोस्तों,
         जो यहाँ कहने जा रहा हूँ उसके लिए वैसे तो आपके सामने किसी भूमिका की जरुरत नहीं है, मगर फिर भी बता दूँ यह लोकतंत्र है, यहाँ सब राजा है , सब रंक भी है , सब सत्ता में है सब सेवक भी है, यह श्रंखला अनंत अपार असीम आकाश के समान विशाल है, । यहाँ भांति-भांति के स्वामी है और भांति-भांति के सेवक भी । उन्ही में से कुछ लोग ऐसे भी होते है जो मात्र आदर्श बघारते है और अपने लिए अपने अधिकारियों से कुछ और व्यव्हार चाहते है और अपने अधिनस्थो से कुछ और व्यव्हार करते है। यह किसी एक विभाग या व्यक्ति की बात नहीं है वरन आजकल के ६० से ७० प्रतिशत लोग इसी बीमारी से ग्रसित है तो प्रस्तुत है " हे अधिकारी"........... साथ ही अनुरोध है कि इसे मेरी निजता से ना जोड़े हालाँकि यह मात्र फलसफा भी नहीं है............

हे अधिकारी जगत मुरारी , नाच रहा तेरे आगे  मै ।
सुनकर तेरी वाणी को ,  स्वध्न्य सदा रहता हूँ मै ।
तेरे आने के पहले मै, रण-भूमि 'कुरुक्षेत्र' में आता हूँ ।
चक्रव्यूह के सब द्वारों का, मै  भेद तुझे बतलाता हूँ ।।

तेरे   खिलाफ लोगों का ,  मै कच्चा चिठ्ठा लाता हूँ ।
तेरी गर्दन  झुके कभी ,  उससे पहले मै झुक जाता हूँ ।
नाराज हो सको मुझ पर तुम, अवसर मै ले आता हूँ ।
तेरी डांट को सुनने में भी, मै हित ही सदा बताता हूँ।।

तेरी हाँ में हाँ मिलाकर , मै आनंद तुझे दिलाता हूँ ।
तेरी मूर्खता को भी मै, नित सिद्धांत नया बताता हूँ ।
तेरे  घर  के राशन को भी ,  मै   ही सदा मांगता हूँ ।
खाकर जो तुम डकार गए, उसको भूल मै जाता हूँ ।।
तेरे आगे अपनी बुद्धि ,  मै  कभी  नहीं  अजमाता हूँ ।
तुझसे ज्यादा सुन्दर बनकर, कभी नहीं मै आता हूँ ।
तेरे  बच्चो  के  लिए खिलौना ,  मै खरीदने जाता हूँ ।
भूलकर अपना जन्मदिवस, बस तेरा रटता जाता हूँ ।।

कलयुग के अवतार हो तुम, ये सबको सदा बताता हूँ ।
अपनी   नवीन खोजों को   मै ,   तेरे नाम चढ़वाता   हूँ ।
तेरी कमियों को आगे बढ़ , मै अपनी कमीं बताता हूँ ।
खुशहाल रहो तुम सदा यहाँ, ये पाखंड रोज रचाता हूँ ।।


यूँ चक्रवर्ती  सम्म्राटों सा मै , एहसास तुझे   कराता  हूँ ।
इस लोकतंत्र में राजतन्त्र का , घालमेल  करवाता हूँ ।
इतने पर भी अगर ना तुम , खुश हो पाओ  मेरे भगवान।
करबद्ध प्रार्थना है मेरी, अब तो ले जाएँ तुझको भगवान।।

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

2 टिप्‍पणियां:

  1. आप की रचना 30 जुलाई, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपने सुझाव देकर हमें प्रोत्साहित करें.
    http://charchamanch.blogspot.com

    आभार

    अनामिका

    जवाब देंहटाएं

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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