जगतगुरु ने कहा है जब से , जग है माटी मोल ।
भाव बढ़ गया माटी का , अब माटी है अनमोल ।
खाली हाथ ही आये है , खाली हाथ ही जाना है ।
जब से कहा ये जगतगुरु ने , कर्ज का सबने खाया है ।
क्या है मेरा क्या हैं तेरा , ये दुनिया रैन बसेरा है ।
जगतगुरु की सुनकर बाते , औरों का मॉल बटोरा है।
अब तो कहते लोग सभी , जो तेरा था वो मेरा है ।
तेरा कब था तेरा जिसको , तू कहता ये मेरा है ।
जब खाली हाथ ही आये थे , सब औरों से ही पाए हों ।
लौटा दो अमानत औरों की , मोह से क्यों भरमाये हों ।
माटी मोल है जीवन ये , सब माटी में मिल जायेगा ।
करो दान और पुण्य कमाओ , वही साथ में जायेगा ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
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ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "
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