हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

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गुरुवार, 18 अगस्त 2011

त्रिकाल

१. 


अब मनमोहन 'सिंह' जैसे प्रधान मंत्री से यही सुनना बाकि रह गया था ..
" अन्ना के अनशन के पीछे विदेशी ताकतों का हाथ हो सकता है.." 
अरे मै यह नहीं कहता कि यह असंभव है, कुछ भी हो सकता है....
मगर अगर एसा है तो बात गंभीर है , इसे साबित करो ना प्रधानमंत्री जी...
केवल जुबानी जमाखर्च क्यों ?
अरे तुम्हारी दर्जन भर सरकारी ख़ुफ़िया एजेंसिया क्या हिजड़ो कि तरह से अपना हाथ ताली बजाने में लगाये हुए है...जो उन्हें आपकी विदेशी हाथ के बात को प्रमाण सहित साबित करने के लिए सबूत नहीं मिल रहा है ?

२. 

देखा आदरणीय योग गुरु बाबा रामदेव जी...
अगर आप उस दिन डरकर "सलवार समीज" पहन कर महिलाओं के झुण्ड में न भागते
और अपनी गिरफ़्तारी होने देते तो जो हाल आज दिल्ली का है और जो जन-सैलाब उमड़ा हुआ है..
वो तब उसी दिन आपके गिरफ़्तारी के साथ हो जाता और आपको भी यू बे-आबरू होकर अपना अनसन न तोड़ना पड़ता...
आपकी ये एक छोटी सी भूल आपके राजनैतिक कैरियर और आपके दम-ख़म पर हमेशा एक बदनुमा दाग की तरह रहेगा इसका मुझे हमेशा अफसोस होगा..पर क्या करे.. आपमें वो नैतिक बल नहीं था जो पहले "महात्मा गाँधी और जे.पी" में था और अब अन्ना हजारे में है...

३.



बाबा तुलसीदास ने सही कहा था...
"विनय न मानत जलधि जड़,गए तीन दिन बीत..
बोले राम सकोपि तब , भय बिन होय न प्रीति "
तो लीजिये आज फिर
रामलीला मैदान की साफ सफाई हो रही है..
जिनके अहंकार को फूँका जाना है वो अपने पुतलो के साथ तैयार खड़े है...
और जिन्हें फूँकना है वो भी धनुष बाण लेकर दल-बल के साथ आने ही वाले है...
जनता भी आ रही है...
संग
जनता जनार्दन भी आ रहे है...
देखते है ये आग कितने देर धधकती है और अपनी लपटों में कितनो को जलाती और झुलसाती है...


सोमवार, 2 मई 2011

तलब

चाहतें हद से जब गुजरने लगी , 
न चाहते हुए भी नजर तुझपे पड़ने लगी ।
प्यासा था मै बहुत पहले से साकी,
अब दिल में भी तड़फ उठने लगी ।

यूँ तो खायी थी कसम न आयेंगे इधर , 
पर कदम मेरे खुद आ गए तेरे पास ।
अब आ ही गए हैं तो पिला दो मुझे , 
फिर करते रहना तुम बाकी हिसाब ।

पहले जब आकर पिया था यहाँ ,
मैंने माँगी थी तुमसे केवल शराब ।
गया जब घर और उतरा उतरा नशा ,
मैंने जाना कि उसमे मिली थी शबाब ।

तो आ ही गए हम अब फिर से यहाँ ,
आज नज़रों से ही तुम पिला दो शराब ।
बस आँखों ही आँखों से पिलाना मुझे ,
जाम छलके नहीं ना ही टूटे गिलास ।

कहो तो खुदा की मेहर गिरवी रखूँ ,
भरोसा रखो मुझ पर साकी तुम आज ।
आँखों ही आँखों से मै पीता रहूँगा ,
छुऊँगा नहीं जाम हाथों से आज ।

तमन्ना है मेरी यही बस ओ साकी ,
जो पहले पिया था फिर से पिला दो ।
कहो तो दुबारा नहीं आऊँगा मै ,
बस अबकी छका कर मुझे तुम पिला दो ।।


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सोमवार, 20 सितंबर 2010

कल्कि पुराण : मेरा पुनर्जन्म


कहते है सतयुग में , मै ही हिरणाकश्यप था । 
मेरे कठोरतम शासन से , कम्पित सारा जग था ।
जन्म लिया प्रह्लाद ने , फिर मेरे ही अंश से ।
मुझे मारने के खातिर , याचना किया नरसिंह से ।
मर कर जब मै पहुंचा ऊपर , छीना सिंहासन इन्द्र का ।
घबड़ाकर देवो ने मुझसे , अनुरोध किया फिर जन्म का ।

तब तक सतयुग बीत चुका था , पृथ्वी पर चल रहा था त्रेता ।
बिखर चुके थे राक्षस सारे , छिन गया  रसातल था उनका । 
इस बार मै जन्मा ब्रह्मण था , पर प्रवित्ति वही राक्षसी  थी ।
मेरे कठोर तप के आगे , फिर झुक गयी दैवीय शक्ति थी ।
रावण था मेरा नाम मगर , बन गया दशानन मै बल से ।
छीन लिया सोने की लंका , अपने पराक्रम के बल से ।

लगा मिटाने फिर मै जग से , भोग विलास में डूबे प्राणी ।
हाहाकार मचा फिर जग में , लगे भागने कायर प्राणी ।
जन्म लिया फिर राम ने , और सौदा किया मेरी मृत्यु का ।
मृत्युलोक के बदले मुझको , सिंहासन दिया फिर इन्द्र का ।
मगर कुटिल था इन्द्र बहुत , उबा दिया मुझे स्वर्ग से ।
छोड़ा मैंने भोग विलास , लौटा करने धरती पर राज ।


फिर मेरे लौटने के पहले , लौट चुके थे राम भी ।
धरती पर आ गया था द्वापर , बीत चुका था त्रेता भी ।
इस बार हुआ मेरा जन्म जहाँ , वो यदुवंशो का घर था ।
भूल कर अपना बाहु-बल , वो पशु बल पर निर्भर था ।
युवा हुवा तो मैंने मांगी , उत्तराधिकार में अपनी सत्ता ।
मिली नही जब बातों से , छीन ली मैंने बल से सत्ता ।

मैंने कठोरतम नियमो को , फिर से लागू किये सभी ।
यज्ञ भाग के छिनने से , व्याकुल हो गए देव सभी  ।
पाकर प्रेरणा मेरी ही , तब जन्म लिया फिर कृष्ण ने ।
मेरी कृपा से ही सारी , लीला किया सब कृष्ण ने ।
फिर से आया वो दिन जब , मुझको वापस स्वर्ग मिला ।
आराम मिला मुझको थोड़ा , जग को गीता ग्रन्थ मिला ।

द्वापर बीता जब धरती पर , शासन कलयुग का आया ।
कलयुग ने पाखंड रचाकर , मानव को फिर से भटकाया ।
जाति पांति में बांटा समाज , भ्रष्टाचार को पनपाया ।
धर्म के नाम पर मची लूट , बहु ईश्वर का युग आया ।
देख जगत की हालत को , स्वर्ग में मै फिर रह ना पाया ।
लेकर जन्म पुन: धरा पर , लो आप के मध्य मै वापस आया ।
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शनिवार, 18 सितंबर 2010

अथ श्री//मती अफवाह ...


क्या कहना अफवाहों का , वो बेसिर पैर की होती है ।
कहाँ से उनका जन्म हुआ , ये बात छिपी ही रहती है ।
जन-मानस है संचरण मार्ग , और वायु वेग से चलती हैं ।
अल्प काल में सुरसा सा , सौ योजन का मुख करती हैं ।
अजर अमर अविनाशी होकर , झूंठ को सच में बदलतीं हैं ।
इनकी माया के आगे , दाल नहीं सच की गलती है ।
है शीश नहीं जिसे काट सकें , ना पैर हैं जिसको बांध सके ।
स्थूल नहीं काया इनकी , जिसको कैद में डाल सकें ।

विकसित हो मानव कितना , ना इसकी गति को थाम सके ।
हो नगर मोहल्ला चाहे गाँव , अफवाह का जन्म ना टाल सके ।
जितना ही प्रतिकार करो , उतनी यह बलवान बने ।
कार्य सिद्ध हो जाने पर , स्वयं से अंतर्धान बने ।
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आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

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आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

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