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मंगलवार, 12 अगस्त 2014

सामंजस पर टिकी ये श्रृष्टि है..

कुछ अच्छाई और बुराई के ,
सामंजस पर टिकी ये श्रृष्टि है ।
विपरीत ध्रुवो के बिना कहाँ ,
कभी चल पायी कोई श्रृष्टि है ।
शिव शक्ति के मिले बिना  ,
नहीं होती श्रृष्टि की उत्पत्ति है ।

मानव जाति है जग में तो ,
दानवो जाति भी होगी ही ।
यदि देवो का है देवलोक ,
असुर लोक भी होगा ही ।
अच्छाई बिना बुराई के ,
पहचानी नहीं कभी जाती ।

अगर है बहती प्रेम की धारा ,
फिर विरह वेदना होगी ही ।
त्याग अगर है इस जग में ,
फिर लोभ की ज्वाला होगी ही ।
दुःख के बिना नहीं इस जग में ,
सुख का एहसास हो पाता है ।

अच्छाई और बुराई के ,
सामंजस पर टिकी ये श्रृष्टि है ।
विपरीत ध्रुवो के बिना कहाँ ,
कभी चल पायी कोई श्रृष्टि है ।
सामंजस्य बनाकर चलना ही ,
जीवन की है बस नियति है ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2014 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

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ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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