मेरी डायरी के पन्ने....

रविवार, 17 अगस्त 2014

मिले जो राह में कांटे..

मिले जो राह में कांटे , कदम वापस ना लेना तुम ।
उन्हें समेट कर आगे , कदम अपने बढ़ाना तुम ।
मिले जो राह में ठोकर , कदम धीमे ना करना तुम ।
कदम की ठोकरों से ही , राह खाली कराना तुम ।
खड़े अवरोध हों आगे , ना घबड़ाकर रुक जाना तुम ।
मिटाकर हस्तियाँ उनकी , मंजिल अपनी पाना तुम ।

मिले जो संगी साथी तो , उन्हें भी साथ ले लेना ।
मगर घुटनों पे रेंग कर , कभी ना साथ तुम देना ।
निभाना दोस्ती या दुश्मनी , आगे ही बढ़कर तुम ।
मगर कभी पीठ में छुरे को , ना अवसर देना तुम ।
लगी हो जान की बाजी , अगर मंजिल को पाने में ।
कभी भूले से ना मन में , हिचकिचाहट लाना तुम ।

भले ही लोग करते हों , तुम्हारी कैसी भी निंदा ।
भूल कर जग की बाते , साथ सच का ही देना तुम ।
ना खाना खौफ तूफानो से , हौंसला साथ तुम रखना ।
भले ही कुछ भी हो जाए , साथ तुम अपनो के रहना ।
दिखे कुछ भले मुश्किल , मगर मुश्किल कहाँ कुछ भी ।
अगर तुम ठान मन में लो , कहाँ कुछ भी तुम्हारे बिन ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2014 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG 

मंगलवार, 12 अगस्त 2014

सामंजस पर टिकी ये श्रृष्टि है..

कुछ अच्छाई और बुराई के ,
सामंजस पर टिकी ये श्रृष्टि है ।
विपरीत ध्रुवो के बिना कहाँ ,
कभी चल पायी कोई श्रृष्टि है ।
शिव शक्ति के मिले बिना  ,
नहीं होती श्रृष्टि की उत्पत्ति है ।

मानव जाति है जग में तो ,
दानवो जाति भी होगी ही ।
यदि देवो का है देवलोक ,
असुर लोक भी होगा ही ।
अच्छाई बिना बुराई के ,
पहचानी नहीं कभी जाती ।

अगर है बहती प्रेम की धारा ,
फिर विरह वेदना होगी ही ।
त्याग अगर है इस जग में ,
फिर लोभ की ज्वाला होगी ही ।
दुःख के बिना नहीं इस जग में ,
सुख का एहसास हो पाता है ।

अच्छाई और बुराई के ,
सामंजस पर टिकी ये श्रृष्टि है ।
विपरीत ध्रुवो के बिना कहाँ ,
कभी चल पायी कोई श्रृष्टि है ।
सामंजस्य बनाकर चलना ही ,
जीवन की है बस नियति है ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2014 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

शुक्रवार, 8 अगस्त 2014

ये मान्यता है...पर मै इससे कदापि सहमत नहीं।

मान्यता है और मीडिया के लोग कहते हैं ये तस्वीर राम भक्त हनुमान जी के पैरों की है श्रीलंका में.... 

पर मै इससे कदापि सहमत नहीं कि ये तस्वीर राम भक्त हनुमान जी के पैर हैं


अगर ये निशान हनुमान जी के पैरों का होता तो अकेला नहीं होता..वरन दूसरे पैर का निशान या और भी पदचिन्ह होते वहां पर क्योंकि हनुमान जी केवल एक पैर पर तो खड़े नहीं रहे होंगे लंका में।


निश्चित तौर पर यह बाली पुत्र और वानर सेना के सेनापति महाबली अंगद के पैर के निशान हैं।

और ये तब के हैं जब वो भगवान् राम के दूत बनकर रावण की सभा में गए थे और रावण के ललकारने के जबाब में अपना "एक पैर जमा कर" वहीँ राजसभा में खड़े हो गए थे और समस्त राक्षस जाति को ललकार कर बोले थे कि यदि कोई मेरा एक पैर भी हिला दे तो भगवान् राम अपनी हार बिना युद्ध के मान लेंगे...

और कहते हैं कि महाबली अंगद ने अपना पैर भूमि में इतना तगड़ा जमाया था कि दशानन रावण के दरबार का कोई भी बलशाली राक्षस और यहाँ तक उसका इंद्र तक को बंदी बना लेने वाला पुत्र इन्द्रजीत भी अंगद के एक पैर को हिला नहीं पाया था।

तो यह सत प्रतिशत निश्चित तौर पर अगर है किसी के पैरों का निशान तो महाबली बालि पुत्र अंगद का ही।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2014 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG