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गुरुवार, 17 अप्रैल 2014

रूठ कर जब मै चला...

रूठ कर जब मै चला , कुछ दूर तक चलता रहा। 
चोट दिल पर थी लगी , और घाव था रिसता रहा। 
मन था आहत मेरा , तेरे तीखे पैने कटाक्ष से। 
साथ ही अफसोस था , तेरे मूर्खतापूर्ण बात से। 
फिर अचानक रुक गया , मै ठिठक कर राह में। 
मन में आया देख लूँ , थोड़ा पलट कर राह में। 

क्या तुम्हे अफसोस है , अपने किये पर कुछ अभी। 
या अभी भी व्याप्त है , अहंकार तुममे अभी। 
देखा पलट कर मैंने जब , तुम थे वापस जा रहे। 
फिर अचानक यूँ लगा , कदम तेरे लड़खड़ा रहे। 
रोक ना पाया मै स्वयं को , तुम्हे डगमगाते देख कर। 
फिर चल पड़ा तेरी तरफ , तुझको अकेला देख कर। 

कैसे मै उसको छोड़ देता , जिसको सँभाला था सदा। 
तूने नादानियाँ पहले भी की , मै माफ़ करता रहा सदा। 
फिर आज भी तो है वही , हालात जाने पहचाने से। 
अपना तुझे माना सदा , कैसे रुक जाऊ फिर अपनाने से। 
लो लौट मै फिर आया अभी , भुला कर बीती बातो को। 
बस हो सके तो फिर न कहना , तीखी कडुवी बातो को। 

फिर ना हो हालात यूँ , फिर ना टूटे दिल कभी। 
रिश्ते तोड़ना आसान है , पर निभाना मुश्किल सभी। 

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2014 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

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