रूठ कर जब मै चला , कुछ दूर तक चलता रहा।
चोट दिल पर थी लगी , और घाव था रिसता रहा।
मन था आहत मेरा , तेरे तीखे पैने कटाक्ष से।
साथ ही अफसोस था , तेरे मूर्खतापूर्ण बात से।
फिर अचानक रुक गया , मै ठिठक कर राह में।
मन में आया देख लूँ , थोड़ा पलट कर राह में।
या अभी भी व्याप्त है , अहंकार तुममे अभी।
देखा पलट कर मैंने जब , तुम थे वापस जा रहे।
फिर अचानक यूँ लगा , कदम तेरे लड़खड़ा रहे।
रोक ना पाया मै स्वयं को , तुम्हे डगमगाते देख कर।
फिर चल पड़ा तेरी तरफ , तुझको अकेला देख कर।
कैसे मै उसको छोड़ देता , जिसको सँभाला था सदा।
तूने नादानियाँ पहले भी की , मै माफ़ करता रहा सदा।
फिर आज भी तो है वही , हालात जाने पहचाने से।
अपना तुझे माना सदा , कैसे रुक जाऊ फिर अपनाने से।
लो लौट मै फिर आया अभी , भुला कर बीती बातो को।
बस हो सके तो फिर न कहना , तीखी कडुवी बातो को।
फिर ना हो हालात यूँ , फिर ना टूटे दिल कभी।
रिश्ते तोड़ना आसान है , पर निभाना मुश्किल सभी।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2014 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
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"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "
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