मेरी डायरी के पन्ने....

रविवार, 1 दिसंबर 2013

अचानक...

आप इशारो से मुझको बुलाने लगे , मेरे सपनो में फिर आप आने लगे। 
मैंने सोंचा था थोडा सो लूँ मगर , आप मुझको फिर आकर जगाने लगे। 
अपने नाजुक हाथो के एहसास से , मेरे तन मन में सिरहन उठाने लगे।
मेरी सांसो में अपने बदन की महक , आप चुपके से आकर मिलाने लगे।
अपना मुखड़ा छुपाकर परदे में जब , आप नजदीकतर मेरे आने लगे। 
छिप गया चाँद बादलों की ओंट में , इसका दीदार मुझको कराने लगे। 

मेरे चहरे पर तेरी बिखरी लटे, जब घटाओं सी आकर छाने लगी। 
आने वाला है कोई तूफान अब , ये एहसास मुझको कराने लगी। 
सम्भलने की कोशिश करता मगर , झोंके बारिस की मुझको भिगाने लगी। 
किसी बेकाबू लहरो की भँवर सी , वो बहाकर मुझको ले जाने लगी। 
मेरे ओंठो पर दहकते लावे सा जब , तेरे ओंठो की  छुवन आने लगी। 
सपनो की दुनिया में नहीं हूँ मै , तू हकीकत में संग ये बताने लगी। 

आँखे खोली तो मै था तेरी बाँह में , मेरी बाँहो में फिर आप समाने लगी। 
मेरे सपनो में आप आती ही थी , अब हकीकत में भी पास आने लगी। 

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
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पर
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अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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