मेरी डायरी के पन्ने....

गुरुवार, 1 मार्च 2012

प्यार,छल और कपट..

क्यों चाह रहे उस मंजिल को , जहाँ रूह नहीं बच पानी है

क्यों खोजो रहे वह प्यार पुन: , जो छल और कपट का सानी है । 

झूंठे सच्चे वादों में क्यों ,
फिर मन तेरा ललचाता है ?
वो है एक मृग मरीचका ,
जो मन तेरा भटकता है..!


यदि मिल ही जाये फिर से , छल और कपट में लिपटा प्यार  
क्या खुश रह पावोगे जीवन भर , पूँछो अपने दिल से एक बार  

मेरा तो कर्त्तव्य यही .....,
मै समझाऊंगा बारम्बार 
जब जब व्याकुल होगे तुम ,
मै तुम्हे संभालूँगा हर बार  

सच और झूँठ के अंतर को , मै तुम्हे बताऊंगा हर बार 
वचन दिया है मैने , सत्य का साथ निभाऊंगा हर बार 
फिर चाहे मुझको अपनो का ,
अर्जुन सा करना पड़े विरोध 
दूर करूँगा हर बाधा को ,
जो बनना चाहेगा अवरोध 

बस मुझको तुम दो इतना वचन , नहीं जीवन में निराशा लाओगे
तोडा है जिसने दिल तेरा , भुला उसे तुम जीवन में आगे जाओगे
हाँ ये ईश्वर की सदइच्छा ही है ,
तुम्हे नर्क के द्वार से वापस लाया 
देकर बस थोडा सा कष्ट तुम्हे ,
ज्यादा कष्टों से तुम्हे बचाया 

समझे प्यारे....... यही सत्य है जीवन का..!
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

4 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन कविता, मगर जिसपे बीतता है वो ही समझ पता है..."प्यार से भी जरूरी कई काम हैं प्यार सब कुछ नहीं जिंदगी के लीये" जो प्यार न समजे उसका साथ छोड़ देना ही उचित है.

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  2. Bahot hi khoobsurti se aapne zindgi ko sbdo me sameta hai,, _ _ _ _ _ _ _ _ _ _awsum

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स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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