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गुरुवार, 26 जनवरी 2012

खाली मन...

सही कहा ये बात किसी ने , खाली मन शैतान का ।
जब चाहे वो आ जाये , मन को तेरे अपना बनाये ।
जाने क्या क्या तुझे सिखाये , मन में कैसे भाव उठाये । 
सही गलत का अंतर मिटा , मन को तेरे वो भरमाये ।
अभी पुण्य तुम करते थे , अभी पाप की जन्मी इच्छा ।
अभी दोस्ती कर पाए थे , अभी दुश्मनी की है इच्छा ।

अभी बगावत थामी थी , अभी हो गए स्वयं ही बागी ।
अभी अभी थे तुम बैरागी , अभी तुरंत ही लालच जागी ।
अब तक थे तुम ब्रह्मचारी , अभी हो गया मन व्याभिचारी ।
अभी स्वयं में सक्षम थे , अभी क्यों मन में है लाचारी ।
यूँ ही खाली रहता जब मन , बनती बिगड़ती अभिलाषाए । 
पल में विपरीत से भावो की , करती पुष्टि रुधिर शिराए ।

ऐसे  ही जाने कितने पल , मै भी खाली बैठा रहता ।
कुछ ऊल जलूल विचारो की , सीढ़ी मै चढ़ता रहता ।
उसमे से कुछ एक कभी , मेरी हकीकत को झूंठलाते ।
मन में मेरे तूफ़ान उठा , मुझको वो अति ललचाते ।
जब तक वापस ध्यान कहीं , किसी और तरफ न जाता है ।
वही पुरानी मन की इच्छा ,  जाने क्या क्या करवाता है ।


सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति|
    गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें|

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  2. भावनात्मक प्रस्तुति....समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://aapki-pasand.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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