मेरी डायरी के पन्ने....

मंगलवार, 16 अगस्त 2011

दोस्ती और दुश्मनी..

दोस्ती और दुश्मनी , दोनों को निभाने के लिए दिल में जज्बा , दिमाग में पैनापन और हौसले (जिगर) में मजबूती की जरूरत होती है..।

दोस्ती और दुश्मनी दोनों सीखने के लिए , महसूस करने के लिए और निभाने के लिए हमें एक दूसरे के नजदीक जाना पड़ता है , बीच की दूरियों को मिटाना पड़ता है और अपने दिल , दिमाग और नजर में उसे बसाना पड़ता है।

अगर दोस्ती दो दिलो को मिलाती है , दो जज्बातों के बीच एक पुल बनाती है........ तो दुश्मनी दो दिमागों को नजदीक लाती है और उनके इरादों के बीच की दीवार गिराती है।

जहाँ एक अच्छी दोस्ती कभी कभी हमारी रातो की नींद हराम करती है... वही एक बेहतरीन दुश्मनी अक्सर हमें चैन की नींद उपहार में देती है ।

ये हो सकता है कि आपके अच्छे दोस्त भी आपका साथ बुरे दिनों में छोड़ दे.... पर यह कभी नहीं होता है कभी आपके दुश्मन आपको भूल जाये ।

दोस्ती एक कमजोर और खोखली नींव पर भी खड़ी हो जाती है पर ... दुश्मनी सदैव एक मजबूत आधार पर ही टिकती है ।

दोस्ती में लोग अपनी आदतों को दूसरे पर थोपने की कोशिश करने लगते है और दुश्मनी में खुद से दूसरो की आदतों को जानने की कोशिश करते हैं ।

दोस्ती की चाहत रखना सरल है , करना आसान है पर वास्तव  में उसे निभाना कठिन है पर ..दुश्मनी की चाहत रखना कठिन है , करना आसान है और निभाना अत्यंत ही सरल है ।


सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

(हिन्दी में प्रतिक्रिया लिखने के लिए यहां क्लिक करें)