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बुधवार, 10 अगस्त 2011

फिर साथ चले ?

खोल दो तुम द्वार दिल के , बाँह फैलावो जरा ।
तुमसे मिलने के लिए , द्वार पर हूँ मै खड़ा ।
तुमने भी सोचा न होगा , वापस मै फिर आऊंगा ।
भूल कर तेरी बेवफाई , तुझसे वफ़ा फिर चाहूँगा ।
क्या करूँ इन्सान हूँ , दिल से मै हैरान हूँ ।
आदते इन्सान की , पाकर मै बेहाल हूँ ।

जो हुआ वो भूल कर , क्यों न हम फिर साथ चले ?
क्या हुआ जो राह में , अवरोध है अब भी खड़े ।
तुमको लगता है अगर , तुम साथ मेरे चल पावोगे 
हाथ में अपने सदा , तुम हाथ मेरा पावोगे ।
तो सोंच लो एक बार फिर , मै द्वार पर तेरे खड़ा ।
तुझको गले लगाने को , मै बाँह फैलाये खड़ा ।



सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

3 टिप्‍पणियां:

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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