मेरी डायरी के पन्ने....

बुधवार, 6 जुलाई 2011

जाने भी दो यारो..

वो जो महफ़िल में आज रंग भरते है ,
वो वक्त के शहंशाह है जो हर पल बदलते है ।

आज हम आये है बनकर मेहमान उनके , 
छोड़ो जाने भी दो न कुरेदो हमको ।

भले ही तल्ख़ न हो आज जुबाँ मेरी ,
मुझे भरोसा नहीं मिजाज पर अपने ।

रोंक़ न पाउँगा मै आग को भड़कने से ,
अगर चिंगारियों को तुम हवा दोगे यूँ ही ।

बहुत नाजुक सा मुखौटा आज पहना है ,
तुम जिद न करो मुझसे रंगत में आने की ।


© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
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पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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