मेरी डायरी के पन्ने....

सोमवार, 25 जुलाई 2011

प्रेम के विराग..

चाहा था तुम्हे चाहूँगा तुम्हे , जब तक रहूँगा इस जग में ।
ये प्यार नहीं मेरा धोखा है  , ये प्यार है मेरी तपश्चर्या ।

तुम चाहो तो मुझे भुला भी देना , मै तुमको भुला नहीं पाऊंगा ।
जो प्यार मै तुमसे कर बैठा , वो प्यार न दूसरा  कर पाऊंगा ।
तुम्हे भुलाकर इस जग को , अपना मुख ना दिखालाऊंगा ।
अपने प्रेम की बगिया में मै , कैसे किसी और को लाऊंगा ।
जब प्रेम किया है मैंने तुमसे , मरते दम तक निभाऊंगा ।
अपने मन के अरमानो में , बस तेरे ही सपने सजाऊंगा ।

प्रेम नहीं कोई राज-पाठ , औरों को मै जिसे सौंप दूं ।
ना ही ये जागीर कोई , जिसका मै बंटवारा कर दूं  ।
प्रेम नहीं कोई वस्त्र है , जब चाहूं नया धारण कर लूं ।
ना ही प्रेम केंचुली है , जब चाहूं इसे छोड़ कर चल दूं ।
ये तो मेरी हकीकत है , और दिल की मेरे निशानी है ।
यही मिटा दूं मै दिल से , फिर क्या मेरी शेष कहानी है ।

प्रेम नहीं पग-पग पे होता , इसका भी अपना सानी है ।
मानव जीवन जैसी ही , इसकी भी जन्म कहानी है ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

2 टिप्‍पणियां:

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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