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गुरुवार, 30 जून 2011

हँस के हम सारे गम अब छुपाने लगे...

प्रिय गोविन्द जी के सौजन्य एवं उनसे जबरन प्राप्त अनुमति से आपके समक्ष प्रस्तुत है उनकी दूसरी रचना ...


हँस के हम सारे गम 
अब छुपाने लगे , 
हमसे वो अब 
बहुत दूर जाने लगे। 

भूल हमको
किसी से दिल वो लगाने लगे , 
हमी से मोहब्बत के 
किस्से सुनाने लगे। 

उनको हम अब तो
लगने बेगाने लगे ,
हमसे नज़ारे भी वो अब
चुराने लगे।

यादों में उनकी 
हम डूब जाने लगे , 
याद में उनकी 
आंसू बहाने लगे।

प्यार पाने की 
खुशियाँ वो मनाने लगे , 
प्यार खो के 
गम गले हम लगाने लगे।

सपने सारे हमारे 
टूट जाने लगे , 
वो तो औरो के 
सपने सजाने लगे।

वफ़ा कर के भी हम 
हार जाने लगे , 
हँस के आँसू भी हम 
पीते जाने लगे।

जिंदगी गम के साये में 
फिर बिताने लगे , 
हँस के हम 
सारे गम अब छुपाने लगे। 

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 ミ★गोविन्द पांडे ★彡

1 टिप्पणी:

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
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पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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