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शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

जब चाँद छिप गया बादल में...

जब चाँद छिप गया बादल में , उसे ओंट की पड़ी जरुरत ।
मन के भाव छिपाने को , शब्दों की मुझे पड़ी जरुरत ।
शायद शब्दों में कह कर , कुछ अपनी लाज छुपा पाऊ ।
यूँ चाँद का सम्बल लेकर , कुछ रिश्तों को मै बचा पाऊ ।
आँखों से यदि बात किया , वो सच सबसे कह डालेंगी ।
मेरे अंतरमन के भावों का , वो पूरा वर्णन कर डालेंगी ।
अभी ओंट है शब्दों की , शब्दों का मै बाजीगर ।
शब्दों के अर्थ बदलने में , मै हूँ पूरा जादूगर ।
आधा सच और आधा झूंठ , ना पूरा सच ना पूरा झूंठ ।
क्या है सच क्या है झूंठ , ना सच जाने ना जाने झूंठ ।

शब्दों का भ्रम जाल सदा से , बचने की देता है छुट ।
लाज बचाकर रिश्तों की , उनको रखता सदा अटूट ।

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

3 टिप्‍पणियां:

  1. शब्दो की ओट लेकर बहुत गहरी बात कह गये आप
    बधाई बेहतरीन रचना के लिए

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  2. प्रिय बंधुवर विवेक मिश्र जी
    नमस्कार !

    बहुत ख़ूबसूरत है आपका ब्लॉग ! अच्छी सज-धज के साथ तस्वीरों और संगीत का सम्मिश्रण बहुत मनमोहक है … वाह वाऽऽह !

    … और प्रस्तुत रचना भी बढ़िया है । पिछली पोस्ट्स में और भी प्रभावशाली कविताएं हैं ।

    तमाम रचनाओं के लिए हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !

    शुभकामनाओं सहित
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  3. प्रिय बंधुवर
    स्वागत है आपका
    नमस्कार !
    जितना प्यारा मेरा ब्लाग लगा आपको
    उससे ज्यादा प्यारा आपका संबोधन लगा मुझे
    सीधा दिल से निकला और दिल में उतर गया ...

    आपका अपना ही ..
    विवेक

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स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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