मेरी डायरी के पन्ने....

सोमवार, 17 जनवरी 2011

मौका..

बीसियों काम हैं बाकी , कहाँ से आ गए तुम भी ।
कहाँ मुश्किल थी कम पहले , उसी में आ गए तुम भी ।
लगी थी आग पहले से , सेंकने आ गए तुम भी ।
देख कर मौका एक अच्छा , लूटने आ गए तुम भी ।
चलो जब आ गए हो तो , करा लो खिदमत कुछ तुम भी ।
बह रही गंगा में हमसे , धुला लो हाथ अब तुम भी ।
ना जाने लौट कर कब फिर , तुम्हे मौका मिले फिर से ।
या तुमको भूल मै जाऊं , मिलाकर धुल में फिर से ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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