मेरी डायरी के पन्ने....

शुक्रवार, 14 जनवरी 2011

वाह क्या हुनर है......?

वाह वाह क्या हुनर है आपके हाथों में ?
पोर-पोर उँगलियों के भरे है अनुभव से ।
और क्यों ना हों ऐसा जब वर्षों से ,
आपको महारथ है हवाई किले बनाने में ।

पहले भी बहुत से फर्जी रजवाड़ों के , बनाये थे ठेके पे किले आपने हवावों के ।
आज भी अपने नेता और युवराज से  , मिले हैं ठेके हवाई किले बनाने के ।
आपके बनाये किले सब अनोखे हैं , उनमे हवा के ईंटो की हवा से चुनाई है ।
हवा के दरवाजे पर हवा की सफाई है , हवा के कमरों में हवा की रंगाई है ।

कोई भी चले हवा , किले को ना छु पाई है ।
अंदर और बाहर की हवा , आपस में ना मिल पाई है ।
भेद सब हवा के , हवा ही समेटे है ।
हवाई किलो में देखो , हवा के ही बेटे हैं ।
निश्चित ही किसी दिन आपको , निशाने पाक भी मिल जायेगा ।
आपके मकबरे पर एक ना एक दिन , लादेन भी फातिया पढने आएगा ।
महाराज जयचंद जैसा ही , आदर से आपका नाम जग में लिया जायेगा ।
अफ़सोस मगर तब तक आप जैसों के कारण , यह देश कई टुकड़ों में बँट जायेगा  ।

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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