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शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

उलझने

उलझने ये जिंदगी की , ख़त्म नहीं होंगी कभी ।
साथ में जीना हमें , सीखना होगा अभी ।
नाव की कीमत तभी , जब नदी की धार में हो ।
बह रही हो धारा उलटी  , वहीँ खेवैये की बात हो ।
धारा के संग साथ में , बह जाते निर्जीव भी ।
धारा के विपरीत ही , होती जरुरत सामर्थ की ।

हाँ उलझनों के बिना , नहीं जिंदगी का सार है ।
ज्यों कसौटी के बिना , नहीं होता स्वर्ण व्यापार है ।
आग में तपकर सदा , फौलाद है बनता यहाँ ।
संसार से भाग कर , जिंदगी है बदरंग यहाँ ।
तूफान के विपरीत जो , ढाल बनते हैं यहाँ ।
उनके आगे ही सदा , झुंकता है सारा जहाँ ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही प्रेरणात्मक अभिव्यक्ति....संघर्ष के बिना जीवन में कुछ प्राप्त नहीं होता...आभार..

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  2. उचित है और सत्य भी.. क्योँकि जिँदगी जंग है जिसे जीतकर खुश होना है।

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ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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