मेरी डायरी के पन्ने....

मंगलवार, 14 सितंबर 2010

बस तुमको इतना ध्यान रहे...

कब किससे क्या कहना है , किस तरह से उसको कहना है ।
कितना कहना कितना सुनना , कब कुछ पल चुप रहना है ।
यदि तुमको इतना ध्यान रहे , ना आहत कोई इन्सान रहे ।
फिर औरों का भी मान रहे , संग अपना भी सम्मान रहे ।

बात प्रेम की हो चाहे , या आहत मन की बात कहें ।
सम्बन्ध प्रगाढ़ हो करना , या आरोपों की बात करें ।
लेन देन ही करना हो , या कडुवे सच को कहना हो ।
अपनो से कुछ कहना हो , या राजनीत में रहना हो ।

ना बात अधूरी रह जाये, ना अर्थ अनर्थ हो जाये ।
ना लाग लपेट रहे ज्यादा , ना भाषा लठ्ठमार रहे ।
बस तुमको सदा यह ध्यान रहे, ना शब्दों में अपमान रहे ।
फिर कटुता हो चाहे मन में , ना शब्दों में छुपा बाण रहे ।

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी रचना है...जितने अच्छे भाव है उतनी ही अच्छी तरह से शब्दों में पिरोया है...

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  2. Bahut sundar...agar sabhi ko aap ke vyakt kiye vichar yaad rahan to sansar main keval pyar ka hi samrajya hoga...
    http://www.sharmakailashc.blogspot.com/

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  3. सही बात को सही ढंग से कहने का सशक्त तरीका है आपके पास। बहुत ही सहज तरीके से वजनदार बातें छोड़ जाते हैं दिलोदिमाग में।

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स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
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पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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