मेरी डायरी के पन्ने....

शनिवार, 7 अगस्त 2010

कितनी नावों में कितनी बार ?

'हे प्रभु'
जाने कितनी बार अभी तक , तुमने मुझको जन्म दिया ?
जाने कितनी बार कौन सी ,  कोखों   से   उत्पन्न किया ?
जाने कितनी बार मृत्यु नें ,  स्वयं   आगे   बढ़   मुझे  लौटाया ?
जाने कितनी बार स्वयं ही , मृत्यु के पास मै चल कर आया ?
जाने कितनी नावों में , चढ़ना मैंने स्वीकार किया ?
जाने कितने सगार में , मैंने कितना व्यापर किया ?
जाने कितनी नावों का , अब तक मैंने निर्माण किया ?
जाने कितने मझधारों को , अब तक मैंने पार किया ?
जाने कितनी बार है डूबी   ,  नाँव   मेरी मझधारों में ?
जाने कितनी बार मै पहुँचा  , सागर  पार किनारों पे ?
सोंच सोंच कर थक जाता हूँ , समझ नहीं मै पाता हूँ ।
कितनी नावों में कितनी बार , हे प्रभु मुझे चढाओगे ?

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

(हिन्दी में प्रतिक्रिया लिखने के लिए यहां क्लिक करें)