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रविवार, 1 अगस्त 2010

गिद्ध साहित्य की तीसरी किस्त :- कुत्ते और कमीने

मित्रों , क्षमा करें इस शीर्षक हेतु जो पहली नजर में गाली जैसा लगता है और कुछ हद तक इसके विषय-वास्तु हेतु भी , मगर क्या करूँ , मन तो मन ही है , वो मानता नहीं और ना जाने किन किन भावों में भटकता रहता है और मुझसे ना जाने क्या क्या लिखता रहता है । तो पहले सोंच कि इसे यहों ना पोस्ट करू और अपनी डायरी के पन्नों में ही दबा रहने दूँ , फिर सोंचा कि जो भी अच्छा बुरा है वो सब सामने आना चाहिए , तो प्रस्तुत है -  
कुत्ते,  कुतों के वंशज है,
                               कमीने लावारिस अंशज  हैं।
कुछ कुत्ते, कमीने होते है,
                               कुछ कमीने, कुत्ते भी होतें है।
लेकिन जब इंसानों को,
                               हम कुत्ता और कमीना कहते ।
कुत्तों का हम करते अपमान ,
                               कमीनों को सम्मानित करते है ।

तो सोंच समझ कर आगे से ,
                              कुत्ता  और कमीना कहना ।
अपमान ना हो कहीं कुत्तों का ,
                             ना महिमा-मंडित कमीना हो ।
भूल गए ये नियम अगर ,
                            कोई कुत्ता लेगा तुमको काट ।
खुश होकर लावारिस कमीना ,
                            तुम्हे कहेगा अपना सरताज ।
                                        
                © सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

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ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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