मेरी डायरी के पन्ने....

रविवार, 17 अगस्त 2014

मिले जो राह में कांटे..

मिले जो राह में कांटे , कदम वापस ना लेना तुम ।
उन्हें समेट कर आगे , कदम अपने बढ़ाना तुम ।
मिले जो राह में ठोकर , कदम धीमे ना करना तुम ।
कदम की ठोकरों से ही , राह खाली कराना तुम ।
खड़े अवरोध हों आगे , ना घबड़ाकर रुक जाना तुम ।
मिटाकर हस्तियाँ उनकी , मंजिल अपनी पाना तुम ।

मिले जो संगी साथी तो , उन्हें भी साथ ले लेना ।
मगर घुटनों पे रेंग कर , कभी ना साथ तुम देना ।
निभाना दोस्ती या दुश्मनी , आगे ही बढ़कर तुम ।
मगर कभी पीठ में छुरे को , ना अवसर देना तुम ।
लगी हो जान की बाजी , अगर मंजिल को पाने में ।
कभी भूले से ना मन में , हिचकिचाहट लाना तुम ।

भले ही लोग करते हों , तुम्हारी कैसी भी निंदा ।
भूल कर जग की बाते , साथ सच का ही देना तुम ।
ना खाना खौफ तूफानो से , हौंसला साथ तुम रखना ।
भले ही कुछ भी हो जाए , साथ तुम अपनो के रहना ।
दिखे कुछ भले मुश्किल , मगर मुश्किल कहाँ कुछ भी ।
अगर तुम ठान मन में लो , कहाँ कुछ भी तुम्हारे बिन ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2014 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG 

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ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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