मेरी डायरी के पन्ने....

शनिवार, 28 फ़रवरी 2015

गुरुदेव..

माना कि आप बड़े हैं , बुलंदियों के शिखर पर खड़े हैं।
हमने भी कहाँ मानी हार ,अनंत हौसले के साथ लड़े हैं।
मत डर दिखाओ हमको कि , रास्ते मुश्किलों से भरे हैं।
ये स्वभाव है अपना , हम कभी मुश्किलों से नही डरे है।
बंद रास्ते पर अटक जाऊं , कौन सी मुश्किल है अनंत।
पीछे लौट कर कुछ कदम , नयी राह तलाश लूँगा तुरंत।

आप जिसे कहते हो मुश्किल , उसको मुश्किल मानता नही हूँ मै।
मुश्किल तब है मेरे लिये जब , वापस लौटने का हौंसला खो दूँ मै।
फिर गिरने सम्भलने की फिक्र , क्यो अभी से करने लगूँ मै।
दोस्ती और दुश्मनी की, एक नयी परिभाषा गढ़ने चला हूँ मै ।
और दोस्ती या दुश्मनी को , उस हद की हद तक निभाया करता हूँ।
जहाँ दोस्ती मे दुश्मनी और , दुश्मनी मे दोस्ती की शुरूवात होती है।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2014 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG