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मंगलवार, 9 सितंबर 2014

आओ स्वप्नदर्शी बने...

स्वप्नों का संसार अनोखा , और अनोखी स्वप्न साधना ।
काल समय का भेद मिटाकर , स्वप्न नए जगत दिखाता ।
नित जाने-अनजाने लोकों की , स्वप्न हमें है सैर कराता ।
उत्तर कई अबूझ पहेलियों के , स्वप्न ही प्राय: हमें बताता ।

कुछ लोग देखते स्वप्नों को , जब वो निंद्रा में होते हैं ।
खुलती उनकी आँखे जहाँ , वो स्वप्न तिरोहित होते हैं ।
व्यर्थ हो जाते स्वप्न सभी , जो केवल निंद्रा में देखे जाते ।
कभी धरा का ठोस धरातल , स्वप्न नहीं वो बन पाते ।

पर कुछ बिरले मानव होते , जो स्वप्नदृष्टा हैं बन पाते ।
खुली आँख से स्वप्न देखते , स्वप्नों को साकार बनाते ।
खुली आँख से देख स्वप्न को , जीवान्त यहाँ जो कर पाते ।
वही स्वप्नदर्शी इस जग का , कायापलट सदा कर जाते ।

है अगर भूँख कुछ करने की तो , खुली आँख से देखो स्वप्न ।
तन मन धन सम्पूर्ण लगाकर , सृजित करो धरा पर स्वर्ग ।
जब स्वप्न धरातल पर उतरे , तब कहलाती स्वप्न साधना ।
जब सत्य स्वप्न का मूल बने , तब मन की वो बनती कामना । 

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2014 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG