मेरी डायरी के पन्ने....

सोमवार, 30 अप्रैल 2012

एतबार..

तुम जो अक्सर ही ताना कसते हो, झगड़ते हुए मुझसे ।
या कभी प्यार से, फिर उन्ही सवालो को उठा देते हो..।

क्यूँ नहीं मुझको हो पता पूरा एतबार, अब भी तुम पर...?
पर कभी सोंचा है तुमने यही, मेरी जगह खुद को रखकर ?

लो आज बताये देता हूँ तुम्हे खुले दिल से दिलबर,
मै खाली शब्दों पर एतबार नहीं कर पाता अक्सर ।

खाली शब्दों को मै कोरा कागज कहता हूँ आदतन अनपढ़ ।
हाव-भाव जज्बातों की भाषा ही मै समझ पाता हूँ अक्सर...।

तो तुम्हारा सवाल भी अपनी जगह जायज है अब भी ।
और हमारे भरोसे का अंदाज भी वैसा ही है अब अभी ।

क्या करो तुम भी मजबूर हो अपनी आदत से दिलबर ।
हम भी मजबूर है अपनी चाहत की अदा से अक्सर ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG  

शनिवार, 21 अप्रैल 2012

कुछ बहुत पुरानी बाते...

रात अचानक जाने कैसे , याद मुझे तुम आये प्रियवर ।
खोया था मै अपने मन के , उठे खयालो में प्रियवर ।
कुछ भूली बिसरी यादे थी , कुछ बहुत पुरानी बाते थी ।
कुछ याद लौट कर आती थी , कुछ मन को मेरे सुहाती थी ।
फिर जाने कैसे तेरी यादे , बनकर आँधी सी छाने लगी ।
मुझको मेरे अंतर्मन तक , व्याकुल कर वो जाने लगी ।

यूँ तो जाने कितने दिन, वर्ष काल महीने बीत गए है ।
लेकिन शायद मेरे मन में , वो अब भी ताजे बने हुए है ।
माह जेठ था शायद वो , धरती व्याकुल प्यासी थी ।
तेरे अधरों की तपिश मुझे , पल में जलाने वाली थी ।
इससे पहले कि जलकर मेरा , हश्र पतंगे जैसा होता ।
तेरे प्रेम की अग्नि में , तपकर स्वर्ण मै शायद होता ।

दूर कही कुछ बदली छाई , बारिश संग वो लेकर आयी ।
लगे भींगने हम दोनों ही , जब बंद हो गयी बहनी पुरवाई
शायद सावन आया था वो , घनघोर घटा संग लाया था
उसके अविरल धारा ने फिर , कुछ मेरा अश्रु बहाया था
इससे पहले की अश्रु मेरे , खारा करते मीठी नदियों को  
रोम रोम मेरा लगा ठिठुरने , अगहन की ठंडक आने लगी

जब तक आया पूस माह , तुम मुझसे दूर ही रहने लगे
माघ की ठंडक के संग शायद , राह नयी तुम चुनने लगे
फाल्गुन में भी मिले नहीं तुम , होली बदरंग सी बीती थी
लिए अबीर गुलाल मै बैठा था , सज रही तेरी जब डोली थी
यूँ तो गुजर गए है अब तक , कुछ वर्ष महीने दिन अरु काल
लेकिन मेरे मन में अब भी , शेष कही है तेरा हाल.............


सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

गुरुवार, 5 अप्रैल 2012

एक सितारा..

दूर गगन के कोने में , जो एक सितारा चमक रहा ।
वीरान अकेली राहों में , वो मेरा साथी सदा रहा ।
जब जब औरो ने मुझको , चुपचाप अकेला छोड़ दिया ।
मुझको मेरी महफ़िल में , जब गैर बनाकर छोड़ दिया ।
वो एक सितारा आगे बढ़ , हर पल मेरा साथ दिया ।
जब दिखी नहीं परछाही भी , हमसाये का एहसास दिया ।

अब आज अकेला है जब वह , क्यों न उसका साथ मै दूं ।
चुपचाप किनारे रहकर मै , इस रिश्ते का बलिदान क्यों दूं ।
हाँ कल फिर से चमकेगा , कोई और नया सितारा फिर ।
लेकिन क्या दिल का रिश्ता , हम जोड़ सकेंगे उससे फिर ।
सम्बन्ध सदा ही बनाते है , ठोस कसौटी पर कसकर ।
मित्र सदा ही मिलते है , दिल में औरो के बसकर ।

अगर चाहिए मित्र 'अनंत' , रिश्तो को कसौटी पर परखो ।
लेकिन उससे पहले तुम , स्वयं को निश्चित ही परखो ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

बुधवार, 4 अप्रैल 2012

फरियाद..

तेरी यादो में ही कट गयी , देखो कल मेरी सारी रात ।
जब होने लगा सबेरा तब , फिर आयी मुझे तेरी याद ।

तुम ही थे मेरे स्वप्नों में , और हकीकत में भी पास ।
बीत रहे हर एक पल में , केवल तुम ही थे  मेरे साथ ।

आँखों  में बस  तेरा चेहरा , मन  में बस तेरी यादे  है ।
नींद नहीं आती है मुझको , एक तेरी याद में जागे है ।

सोच रहा है मन मेरा , क्या तुमको भी मै आया याद ।
तुम साथ रहो मेरे हर पल , यही मन करता फरियाद ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG