"चल पड़े मेरे कदम, जिंदगी की राह में, दूर है मंजिल अभी, और फासले है नापने..। जिंदगी है बादलों सी, कब किस तरफ मुड जाय वो, बनकर घटा घनघोर सी,कब कहाँ बरस जाय वो । क्या पता उस राह में, हमराह होगा कौन मेरा । ये खुदा ही जानता, या जानता जो साथ होगा ।" ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
मेरी डायरी के पन्ने....
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शनिवार, 31 दिसंबर 2011
मंगलवार, 20 दिसंबर 2011
आसान बहुत है रिश्ते जोड़ना...
मत याद करो मुझको तुम , मत एहसान करो मुझ पर तुम ।
यदि अपने से मै याद ना आऊ , मत खोजो मेरे कहने पर तुम ।
कब तक जबरन याद करोगे , यू कब तक मजबूर रहोगे तुम ।
बिना स्वतः इच्छा के भाई , यू कब तक साथ चलोगे तुम ।
यदि अपने से मै याद ना आऊ , मत खोजो मेरे कहने पर तुम ।
कब तक जबरन याद करोगे , यू कब तक मजबूर रहोगे तुम ।
बिना स्वतः इच्छा के भाई , यू कब तक साथ चलोगे तुम ।
हर रिश्ता होता है बंधन , जिसे हमें निभाना होता है ।
गम और ख़ुशी के पल को , हमें साझा करना होता है ।
अपनो को अपनेपन का , सदा एहसास करना होता है ।
यू आगे बढ़ कर अपनो का , हमें साथ निभाना होता है ।
कुछ जन्मजात के रिश्ते है , कुछ बनते दिल के रिश्ते है ।
कुछ मोल-भाव के रिश्ते है , कुछ बिना मोल के रिश्ते है ।
आसान बहुत है रिश्ते जोड़ना , मुश्किल उन्हें चलाते जाना ।
अपनो का दिल तोड़े बिना , जीवन भर साथ निभाते जाना ।
शनिवार, 17 दिसंबर 2011
सिक्के के दो पहलू..
भाई मेरे मै क्या कहूँ , हर सिक्के के दो पहलू हैं ।
एक सामने दिखता है , एक छिपा रहता है पीछे ।
एक दिखाता जीत हमारी , एक छिपाता हार हमारी ।
एक लादता उपहारों से , एक काटता जाता जड़े हमारी ।
एक राह में फूल बिछाता , एक खोदता उसमे खायी ।
एक साथ कब दिखते हैं , सिक्के के दोनों पहलू भाई ।
हम स्वयं भी है सिक्के जैसे , दो रंग रूप है हममे समाये ।
चित भी अपना पट भी अपना , दोनों अपने मन को भाए ।
एक तरफ सब दया धर्म और , हैं नीति युक्त सब कर्म हमारे ।
एक तरफ जड़ बेईमानी की , मन के अन्दर कहीं जमाये ।
एक रूप है सबको दिखता , एक केवल अपनो को दिखता ।
तुम्हे चाहिए जैसा मै, वैसा तुम मुझको मानो भाई ।
मै तो सदा से कहता हूँ , दोनों पहलू देखो भाई ।
एक अकेला कहाँ है पूरा , कहाँ एक में सत्य समायी ।
आधी दुनिया बाकी हो जब , आधे में क्या मिलना भाई ।
आधी अधूरी बातो ने कब , जग में अपनी धाक जमाई ।
एक सामने दिखता है , एक छिपा रहता है पीछे ।
एक दिखाता जीत हमारी , एक छिपाता हार हमारी ।
एक लादता उपहारों से , एक काटता जाता जड़े हमारी ।
एक राह में फूल बिछाता , एक खोदता उसमे खायी ।
एक साथ कब दिखते हैं , सिक्के के दोनों पहलू भाई ।
हम स्वयं भी है सिक्के जैसे , दो रंग रूप है हममे समाये ।
चित भी अपना पट भी अपना , दोनों अपने मन को भाए ।
एक तरफ सब दया धर्म और , हैं नीति युक्त सब कर्म हमारे ।
एक तरफ जड़ बेईमानी की , मन के अन्दर कहीं जमाये ।
एक रूप है सबको दिखता , एक केवल अपनो को दिखता ।
तुम्हे चाहिए जैसा मै, वैसा तुम मुझको मानो भाई ।
मै तो सदा से कहता हूँ , दोनों पहलू देखो भाई ।
एक अकेला कहाँ है पूरा , कहाँ एक में सत्य समायी ।
आधी दुनिया बाकी हो जब , आधे में क्या मिलना भाई ।
आधी अधूरी बातो ने कब , जग में अपनी धाक जमाई ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
रविवार, 4 दिसंबर 2011
ये कैसा दीवानापन है ?
उफ़ ! ये कैसा दीवानापन है , तुमसे ही बेगानापन है ।
बिन तेरे व्याकुल हूँ रहता , पाकर क्यों बेचैन मै रहता ।
हसरत भरी निगाहों से जिन्हें , हर पल मै देखा करता ।
फिर भी उनको पाकर क्यों , मै आधा अधूरा सा रहता ।
जिनसे करता अतिशय प्यार , जिनका मै दीवाना रहता ।
फिर भी उनको पाकर क्यों , खाली-खाली सा मै रहता ।
फिर भी उनको पाकर क्यों , खाली-खाली सा मै रहता ।
उनको भी एहसास है इसका , पर वो बात छुपाते है ।
शायद अपनी कमजोरी पर , मन ही मन घबड़ाते है ।
मेरा क्या मै हूँ बादल सा , उमड़-घुमड़ कर बरस ही पड़ता ।
जो भी आता मन में मेरे , कहे बिना मै रह नहीं सकता ।
बात समझता हूँ मै भी , ये बस मेरा दीवानापन है ।
पर नहीं समझ मै पाता हूँ , फिर क्यों बेगानापन है ।