हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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गुरुवार, 26 जनवरी 2012

खाली मन...

सही कहा ये बात किसी ने , खाली मन शैतान का ।
जब चाहे वो आ जाये , मन को तेरे अपना बनाये ।
जाने क्या क्या तुझे सिखाये , मन में कैसे भाव उठाये । 
सही गलत का अंतर मिटा , मन को तेरे वो भरमाये ।
अभी पुण्य तुम करते थे , अभी पाप की जन्मी इच्छा ।
अभी दोस्ती कर पाए थे , अभी दुश्मनी की है इच्छा ।

अभी बगावत थामी थी , अभी हो गए स्वयं ही बागी ।
अभी अभी थे तुम बैरागी , अभी तुरंत ही लालच जागी ।
अब तक थे तुम ब्रह्मचारी , अभी हो गया मन व्याभिचारी ।
अभी स्वयं में सक्षम थे , अभी क्यों मन में है लाचारी ।
यूँ ही खाली रहता जब मन , बनती बिगड़ती अभिलाषाए । 
पल में विपरीत से भावो की , करती पुष्टि रुधिर शिराए ।

ऐसे  ही जाने कितने पल , मै भी खाली बैठा रहता ।
कुछ ऊल जलूल विचारो की , सीढ़ी मै चढ़ता रहता ।
उसमे से कुछ एक कभी , मेरी हकीकत को झूंठलाते ।
मन में मेरे तूफ़ान उठा , मुझको वो अति ललचाते ।
जब तक वापस ध्यान कहीं , किसी और तरफ न जाता है ।
वही पुरानी मन की इच्छा ,  जाने क्या क्या करवाता है ।


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बुधवार, 25 जनवरी 2012

आखिर क्यों ?

ये आपके कदम जो,  डगमगाने लगे हैं ।
मंजिल से वो आपको , बहकाने लगे हैं ।

डरता हूँ कहीं राह ही , भटका ना दे आपको ।
आवारगी की हदे , दीवाना ना कर दे आपको ।

हमने चुना था जिसे , अपनी राहों का रहबर ।
एक तेरी नादानी में , वो हो ना जाये रहजन ।

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सोमवार, 23 जनवरी 2012

परिणाम ?

परिणाम का फैसला , भविष्य पर छोड़ दो ।
क्या सही क्या गलत , इतिहास को लिखने दो ।
रखो नजर लक्ष्य पर , डिगे ना मार्ग से कदम ।
काट कर फेंक दे , हर अवरोध जो रोके कदम ।
साम-दाम दण्ड-भेद , हर अस्त्र को मोड़ दो ।
शत्रु के दिलो में गहरे , अपना भय छोड़ दो ।

चाल सदा शत्रु की , सीखते तुम रहो ।
शत्रु दल में हितैषी , खोजते सदा रहो ।
याद रहे हर एक पल , हैं बदलते विकल्प ।
पहचान कर  उपयुक्त , शक्ति से भरो संकल्प ।
ठोकरों की सोच कर , चाल ना मद्धिम करो ।
आवेग में कोई कदम , गलत ना तुम धरो ।


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रविवार, 15 जनवरी 2012

प्यारे भाई सिद्धार्थ..

प्यारे भाई सिद्धार्थ
जन्म दिन की तुम्हे ढेर सारी शुभकामनाये...

देखो प्रतिपल कितने ही , अवसर आगे बढ़ने के ।
उठो बढ़ाओ अपने कदम , द्वार खुले है मंजिल के ।
अवसर करता नहीं प्रतीक्षा , तुम्हे समय पर चलना होगा।
सही वक्त पर सही जगह , तुमको हर पल रहना होगा ।
विकसित होना होगा तुमको , पहचान सको हर अवसर को ।
कब कैसे क्या करना है , जान सको तुम अपने से ।

समय निरंतर गतिमय है , पल में वर्त्तमान हो जाता भूत ।
वर्त्तमान हो जाता वो , तुम जिसको कहते अभी भविष्य ।
पल छिन घडी पहर में ही , दिन मास वर्ष भी जाते बीत ।
बीत रहा हर पल देखो , वर्तमान संग बन जाता है अतीत ।
यह सत्य है मानव जीवन में , होती रहती है कुछ भूल ।
पर उन भूलो को दोहराने पर , बन जाती है वो शूल ।
सबक सीखना होगा तुमको , अपनी हर एक भूल से ।
तप कर स्वर्ण सा बनना होगा , उठ कर अपने मूल से ।


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गुरुवार, 12 जनवरी 2012

क्षमा करे श्री राम मुझे...

क्षमा करे श्री राम मुझे , पर सहमत नहीं हूँ मै तुमसे ।
कहने को तो कहता हूँ , मर्यादा पुरषोत्तम भगवान तुम्हे ।
पर कभी खटकती है दिल में , कुछ छोटी छोटी बात मुझे ।
यूँ तो वो भी सतयुग था , जो सत को समझ न पाया था ।
मै तो कलयुग का प्राणी हूँ , क्या समझ सकूँगा तेरे सत को ।
वो भी क्या था राज्य कोई , जो अबला की रक्षा कर न सके ।
तुम भी क्या थे पुरुष कोई , जो नारी का आश्रय बन न सके ।
केवल समाज के कहने पर ,पति धर्म का ना निर्वाह किया ।
बिना ठोस कारण के ही , एक अबला पर अत्याचार किया ।

मारा था तुमने बाली को , पर नारी गमन के कारण ही ।
पर क्या निज नारी को , उसका अपना सम्मान दिया ।
सुग्रीव भी एक अपराधी था , जिससे भय ने भ्रात द्रोह का पाप कराया ।
पर तुमने उसको गले लगाकर , छल से किष्किन्धा का राज्य दिलाया ।
इन्द्रजीत के यज्ञ को क्यों , लक्ष्मण के हाथो विध्वंस कराया ।
वो तो केवल यज्ञ ही था , क्यों धर्म कार्य जबरन रुकवाया ।
तुम तो केवल निभा सके बस , उस समय की कुछ मर्यादा को ।
क्यों नहीं रचा तुमने नूतन , सत पुरुष के नव प्रतिमानों को ।
क्षमा करे श्री राम मुझे , मै सहमत नहीं हो पाया तुमसे....... ।


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शत - शत नमन...!!

अभिनन्दन है , वंदन है तेरा ।
हे राष्ट्र पुरुष , हे महापुरुष ।
सामर्थ नहीं हम में इतना ,
कर पाए तेरा समुचित गुणगान ।
गुंजित है ये धरती सारी ,
गूँज रहा नभ में तेरा यशोगान।

स्वामी विवेकानंद जी की "जयंती"
'युवा दिवस’ (१२ जनवरी)
पर कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से
शत - शत नमन...!!

सोमवार, 9 जनवरी 2012

अर्थ का कोई अर्थ नहीं..


अंधियारे का अर्थ नहीं , अब कोई दीपक नहीं जलेगा ।
उजियारे का अर्थ नहीं , अब अन्धकार न फिर फैलेगा ।
कठिन राह का अर्थ नहीं , अब सुगम मार्ग ना निकलेगा ।
सहज सुगम का अर्थ नहीं , फिर कष्ट नहीं कोई उभरेगा ।
शत्रु दलों का अर्थ नहीं , कोई मित्र ना उनमे निकलेगा ।
शुलभ मित्रता का अर्थ नहीं , फिर शत्रु ना कोई पनपेगा ।
बँध जाने का अर्थ नहीं , अब मुक्ति कहाँ मिल पायेगी ।
व्यापक मुक्ति का अर्थ नहीं , वो बंधन फिर ना लायेगी ।
तुम्हे बिसराने का अर्थ नहीं , अब याद तेरी ना आयेगी ।
चिर यादों का अर्थ नहीं , वो बिसरायी कभी ना जायेगी ।
नव यौवन का अर्थ नहीं , जरा-अवस्था कभी ना आयेगी ।
शर शैया का अर्थ नहीं , मन में प्रीति ना वो जगाएगी ।


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गुरुवार, 5 जनवरी 2012

रिश्तो की आधारशिला पर..

रिश्तो की आधारशिला पर , है टिकी सभ्यता मानव की ।
कुछ जन्मजात बनते रिश्ते , कुछ मिलते जन्म के बाद ही ।
कुछ रिश्ते स्वयं बन जाते हैं , कुछ मजबूरन लोग बनाते हैं ।
कुछ पल दो पल के होते रिश्ते , कुछ जीवन भर चल जाते हैं ।

कुछ में बहती भावो की धारा , कुछ में होता व्यवसाय भरा है ।
कुछ कर्तव्यबोध जगाते है , कुछ परिजीवी सा चूसते जाते हैं ।
कुछ के मूल में होता तन , कुछ रिश्तो का आधार बनाता मन ।
कुछ रिश्तो के पीछे होता धन , कुछ रिश्ते चलते जाते बे-मन ।

कुछ सुद्ध लाभ की रखते चाह  , कुछ रिश्तो दिखलाते हमको राह  ।
कुछ अपना सर्वस लुटाये है , कुछ रखते है मन में बस डाह ।
कुछ आदेशो के पालक होते , कुछ हम पर आदेश चलाते है ।
कुछ रिश्ते दिल में बस जाते है ,कुछ मनमर्जी करते जाते हैं ।

इन्ही रिश्तो की आधारशिला पर , है टिकी सभ्यता मानव की....

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रविवार, 1 जनवरी 2012

पाप क्या और पुण्यं क्या...


पाप क्या और पुण्यं क्या , दोनों नदी के हैं किनारे ।
बीच में बहती है धारा , छूती सदा दोनों किनारे ।
बहु विविध हैं रंग उनके , बहु-विविध उनकी विधाये ।
चन्द्रमा की ही तरह , है बदलती उनकी कलाये ।
कल जिसे थे पाप कहते , आज कहलाता है पुण्यं ।
कल था जिसका मान कुछ , आज कहलाता है शून्य ।
है अगर तुमको जरूरत , जाकर खोजो उनका मूल ।
पाकर तुम हैरान होगे , एक ही है दोनों का मूल ।
है अगर अंतर कोई , वो सोंच की केवल दिशाए ।
एक पूरब है अगर , दूसरी पश्चिम कहाये ।

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स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा स्वागत है...

स्वागत है प्रिय नव वर्ष तुम्हारा स्वागत है...
स्वागत है ये वर्ष २०१२ तुम्हारा स्वागत है ।
जाने कितनी भूली बिसरी यादे पीछे छोड़ चले ,
बीत गए उस वर्ष २०११ को जब विदा किये ।

यूँ तो जाने कितनी यादे , मन ने बीते वर्ष संजोई है ।
कुछ उनमे खट्ठी यादे है , कुछ रसगुल्ले सी मीठी हैं ।
याद करे क्या हम उन पल को , जो रंजो-गम में डूबे है ।
बेहतर है हम याद रखे जो , मन को पुलकित करती हैं ।

छूट गए कुछ लोग पुराने , कहीं चलते चलते राहों में ।
नहीं अकेले होने पाए , नए रिश्ते मिले उन्ही राहों में ।
यूँ मिश्रित भावो से हमने , एक और वर्ष बिता दिया ।
बीत रहे उस वर्ष को , आलिंगन कर के विदा किया ।

अभिनन्दन करते है तेरा , आलिंगन कर नव वर्ष तेरा ।
प्रियतम सा तुम प्रिये रहो , यही चाहत है तुमसे मेरा ।
जो मेरे अपने है अब तक , वो अपनो सा संग साथ रहे ।
मेरे शीश पर माता-पिता और मेरे ईश्वर का  हाथ रहे ।

जो लगे भटकने कदम मेरे , तुम बाँह पकड़ कर लेना थाम । 
मुझे भुला दे मेरे अपने , मत करने देना तुम ऐसा कोई काम ।
भाई बन्धु सब पास रहें , हममे पांडवों जैसा प्यार रहे ।
मित्र यार भी साथ रहे , सदा अपनो सा अधिकार रहे ।

चलते चलते थक मै जाऊँ , ना इतनी लम्बी राहें देना ।
दुःख से मै व्याकुल हो जाऊँ , ना तुम इतनी आहेँ देना ।
मेरे मन की व्याकुलता को , अब तुम देना पूर्ण विराम ।
पूरी कर मेरी अतृप्त इच्छाए , मुझको देना कुछ विश्राम ।

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आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

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आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

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